दून घाटी जितनी खूबसूरत है, उतना ही खूबसूरत यहां का मौसम भी है. ये नायाब खूबसूरती और खुशनुमा मौसम ही देहरादून को एक बेहतरीन जगह बनाती है. ये घाटी जितनी खूबसूरत है, उतना ही महत्वपूर्ण इसका इतिहास भी है. एक ऐसा इतिहास, जिसमें मुगलों पर विजय की कहानी है तो औरंगजेब की हनक के डरावने किस्से भी है. रानी कर्णावती की बनाई नहरें हैं तो अफगानों की लाई बासमती की खूशबू भी है. लीची की मिठास है तो अंग्रेजों की गुलामी की भी अनकही सैकड़ों कहानियां हैं.
ये सभी कहानियां हम आपको निंशा बाकी है के अलग अलग प्रोग्रामों में बतायेंगे और सुनायेंगे. न केवल बतायेंगे और सुनायेंगे, बल्कि घुमायेंगे भी. आज की हमारी घुमक्कड़ी होगी उस एतिहासिक मेजबानी की, जिस मेजबानी का खामियाजा भारत की विदेश नीति को भुगतना पड़ा. ऐसा खामियाजा, जिससे भारत को अपने पड़ोसी देश से युद्ध करना पड़ा. जिस युद्ध ने पूरे एशिया का राजनीतिक और भौगोलिक समिकरण बदल कर रख दिया.
हम बात कर रहे हैं, Tenzin Gyatso की जिनको तिब्बती समुदाय और दुनिया दलाई लामा के नाम से जानती है. 6 जुलाई को दलाई लामा का 86 वां जन्म दिन था. आज से लगभग 63 साल पहले 1959 को दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ सबसे पहले मसूरी पहुंचे थे. उस समय उनकी उम्र 23 साल नौ महीने थी. जहां वो बिड़ला हाउस में अपनी मां के साथ एक साल रहे. यही उनका भारत में पहला घर था. इस घर में वो तब तक रहे, जब तक उन्हें धर्मशाला के समीप मैक्लोडगंज में स्थाई घर नहीं मिल गया. मसूरी में बिताये उस एक साल के बारे में दलाई लामा ने अपनी आत्मकथा ‘freedom in exile’ में विस्तार से लिखा है.
उन्होंने लिखा, जब वो मसूरी पहुंचे तो उन्हें लगा था कि कछ ही समय की बात होगी और वो जल्द ही अपने घर ल्हासा लौटेंगे. लेकिन ये एक साल हताशा से भरे रहे. जब दलाई लामा मसूरी पहुंचे थे, उस वक्त तक उनके साथ तकरीबन साठ से सौ अनुयायी ही साथ आये थे. जो मसूरी के हेप्पी वैली में बसे. इसे दलाई हिल्स के नाम से भी जाना जाता है.
हैप्पी वैली में एक तिब्बती मठ है जो 1959 से स्थापित है जब दलाई लामा ने मसूरी में शरण ली थी. तब से यह स्थान लगभग 5000 शरणार्थियों का घर रहा है और मसूरी का बहुत प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है. 1960 में भारत सरकार के समर्थन से central school for tibetans स्थापित किया गया. राहुल सांकृत्यायन जिन्हें दुनिया के महानतम घुमक्कड़ लेखकों में गिना जाता है. उन्होंने अपने बौद्ध धर्म में दिलचस्पी के चलते कुछ वर्ष हैप्पी वैली में बिताए.
Songsten library इन एक साल में दलाई लामा ने मसूरी से देहरादून, दिल्ली या अन्य जगह यात्रा करने के लिये मर्सिडीज कार डीबीटी 8469 का उपयोग किया था. ये कार अभी कुल्हान में मौजूद शॉंगस्टन लाइब्रेरी के बाहर कांच के शीशे में रखी गई है. ये कार कुल्हान में शीशे के सेड में 1964 से रखी गई हैं. इस कार को सेड में रखने के बाद दलाई लामा रेंज रोवर एसयूवी को उपयोग में लाते थे.
Clementown जब 195 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया तो तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और वहां के लोगो को भारत में शरण मिली. धर्मशाला, बाइलाकुप्पे, शिमला, मनाली और दिल्ली जैसी कई तिब्बती बस्तियों स्थापित की गई. इसके बाद से, देहरादून जिला अपनी सुंदरता और हिमालय की शांतिपूर्ण तलहटी के साथ भारत में निर्वासित तिब्बतियों के लिए घर से दूर एक और घर है। देहरादून में डेकाइलिंग सेटलमेंट, क्लेमेन टाउन कॉलोनी और राजपुर सेटलमेंट में तिब्बती बसते हैं. क्लेमेंट टाउन देहरादून के भीड़भाड़ वाले शहर से दूर है. यहां काफी संख्या में तिब्बती शरणार्थी रहते हैं. ये शहर का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण स्थल है यहां तिब्बती शैली के सुंदर और समृद्ध भवन, बौद्ध मठों, मूर्तियों और स्तूपों की मौजूदगी है. बुद्ध मंदिर परिसर का मुख्य आकर्षण है ये भगवान बुद्ध की 107 फीट ऊंची बुद्ध प्रतिमा है. जिसे दलाई लामा को समर्पित किया गया है.
Padmasambhava _तिब्बत में, बौद्ध धर्म 8वीं शताब्दी की शुरुआत से ही फला-फूला और इसके लिए मुख्य रूप से महागुरु पद्मसंभव जिम्मेदार थे. पद्मसंभव को तिब्बत, नेपाल, भूटान, भारत के हिमालयी राज्यों और दुनिया भर के देशों में बौद्धों द्वारा second buddha के नाम से भी जाना जाता है Buddha temple एक तिब्बती मठ है जिसे Mindrolling मठ भी कहा जाता है. यह वर्ष 1965 में Kochen Rinpoche और कुछ monks द्वारा बनाया गया था. तिब्बती भाषा में Mindrolling शब्द का अर्थ है पूर्ण मुक्ति का स्थान. ये बौद्ध धर्म की धार्मिक और सांस्कृतिक समझ के प्रचार और संरक्षण के लिए बनाया गया था.
पहला मिन्द्रोल्लिंग मठ 1676 में तिब्बत में स्थापित किया गया था. देहरादून में छठा मिन्द्रोल्लिंग मठ 1965 में स्थापित किया गया था. माइंड्रोलिंग मठ बौद्धों के विभिन्न संप्रदायों का एक निंग्मा स्कूल है. मठ युवा भिक्षुओं और ननों को शैक्षिक बौद्ध शिक्षा के माध्यम से शिक्षित करता है और तिब्बती की समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करता है और उन्हें आधुनिक विज्ञान और अंग्रेजी के साथ शिक्षित भी किया जाता है.
इस पर्यटक आकर्षण मठ में कई शानदार बौद्ध कलाएँ और वास्तुकलाएँ हैं जैसे स्तूप, बुद्ध की मूर्तियाँ और प्रार्थना चक्र. बुद्ध मंदिर को तिब्बती धर्म के चार स्कूलों में से एक के रूप में बनाया गया था. इस मंदिर परिसर को nyigma के नाम से जाना जाता है. अन्य तीन स्कूल काग्यू, गेलुग और शाक्य वे भी देहरादून में स्थित हैं. राजपुर रोड में sakya, क्लेमेनटाउन में geluk और songsten library में kagyur. हालांकि इनमें निंग्मा सबसे पुराना माना जाता है.
मठ का स्तूप परिसर, एक अन्य प्रमुख आकर्षण केंद्र है. मठ की चौथी मंजिल आप लकड़ी की सीढ़ी के माध्यम से पहुंच सकते है और दून घाटी के 360 डिग्री दृश्य देख सकते हैं. चारों ओर सैकड़ों भिक्षु, प्रार्थना चक्र घुमाते लोग और रंगीन झंडे इस जगह को और भी सुंदर बनाते है. दून और मसूरी के अलावा तिब्बती समुदाय के लोग भारत के कई शहरों में रहते है.
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में मौजूदा समय में एक लाख दस हजार तिब्बती रहते हैं. हालांकि ये जनसंख्या पहले ज्यादा थी. जिस वक्त दलाई लामा भारत आये, उसके कुछ सालों के भीतर ही भारत में लगभग दो लाख तिब्बतियों ने प्रवेश कर लिया था. इसमें सबसे ज्यादा उत्तराखंड, हिमाचल, बंगाल, सिक्कम आदि राज्यों में रहना पसंद किया. तिब्बती समुदाय की जनसंख्या का लगातार कम होने कारण ये है कि पुरानी पीढ़ी लगभग मर चुकी है और नई पीढ़ी देश छोड़कर पश्चिम की ओर रूख कर रही है.
जो भी है तिब्बती समुदाय के लोग जितने शांतिप्रिय होते हैं, उतने ही प्यारा उनका व्यवहार भी होता है. बेहद व्यवहार कुशल होने के कारण इस समुदाय के लोग अपराध करने की कभी सोचते तक नहीं है. इसलिये जहां भी तिब्बती कॉलोनी होती है, वहां का वातावरण शांत होता है. शहर के लोग सुंदर तिब्बती कालीन बनाते है इसके अलावा पर्यटकों के बीच सबसे तिब्बती हस्तशिल्प में तिब्बती धूप, तिब्बती चाकू, थंगका पेंटिंग लोकप्रिय हैं. खाने की बात करे तो नूडल्स, “थुकपा और सेपेन” , बटर टी, दून के फेमस मोमोज के अलावा लाफिंग भी शहर में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं.
स्क्रिप्ट: मनमीत
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