गर्मियों के मौसम में देहरादून में अब तापमान बहुत बढ़ जाता है. लिहाजा, मध्य भारत की तरह अब यहां पर भी बहुत गर्मी महसूस होने लगी है. लेकिन कभी दून घाटी का मौसम यूरोप के देशों की तरह सुकून देने वाला होता था. और इसका कारण था यहां की नहरें. पूरे शहर में नहरों का विस्तार था. कई नहरें समानांतर शहरों के बीचों बीच बहती थी तो कई शहर के बाहरी इलाकों से अंदर की ओर प्रवेश करती थी तो कुछ अंदर से बाहर की ओर जाती थी. इन नहरों से न केवल शहर का मौसम अच्छा रहता था बल्कि बासमती की खेती की लाइफ लाइन भी ये ही नहरें थी.
इस एतिहासिक यात्रा में देखिए कि कैसे इन नहरों का निर्माण हुआ, कैसे इसने एक शहर को जीवंत बनाया और कैसे ये इंसान द्वारा किये गये निर्माणों से अंडर ग्राउंड कर दी गई, और अंत में कैसे इन नहरों के अंडर ग्राउंड होने से पूरे शहर का इको सिस्टम गड़बड़ा गया.
सबसे पहले हम चलते हैं राज्य की सबसे पुरानी नहरों में गिनी जाने वाली राजपुर या देहरा कैनाल की ओर. गढ़वाल के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल अपनी किताब गढ़वाल का इतिहास में बताते हैं कि 1635 में राजा महिपत शाह की मृत्यु के बाद रानी कर्णावती ने राज्य व्यवस्था अपने हाथ में ले ली थी क्योकि उस समय उनका पुत्र पृथ्वीपति शाह की उम्र कम थी. उनको नक्कटी रानी भी कहा गया. वैसे अगर आपको रानी कर्णावती के बारे में विस्तार से जानना है तो बारामासा के एंपायर सीरीज का पहला एपिसोड आप देख सकते हैं.
रानी कर्णावती के दौरान दून की राजधानी नवादा थी. इन्ही रानी कर्णावती ने इस 34 किलोमीटर लंबी नहर को बनाया था. जिसका रखरखाव का काम बाद में गुरु राम राय के महंतों को सौंप दिया गया. बाद में जब अंग्रेजों का शासन आया तो उन्होंने इस नहर की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली.
प्रसिद्ध इतिहासकार और 1871 में देहरादून के असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट जीआरसी विलियम्स अपनी किताब मेमॉयर आफ देहरादून में लिखते हैं कि इसकी मरम्मत साल 1841 में की गई थी जिसका काम 1844 तक चला. राजपुर नहर की मरम्मत का काम कैप्टन प्रोबी कौटले ने किया था. वहीं कैप्टन कौटले, जो बाद में जब कर्नल बने तो उन्होंने हरिद्वार से पश्चिम यूपी तक गंगनहर का निर्माण कराया था.
रिस्पना नदी की शुरूआत मसूरी की तलहटियों से होती है और ये ही वो जगह है जहां से इस नदी के पानी को नहर में डायवर्ट कर दिया गया. रानी कर्णावती ने जब ये नहर बनाई थी, उस वक्त कोई पर्यावरण की चिंतायें तो थी नहीं. लिहाजा, पूरा पानी ही डायवर्ट कर दिया गया। वैसे पर्यावरण नियमों के अनुसार किसी भी जलस्रोत से यदि कोई कैनाल अथवा दूसरी परियोजना बनाई जाती है कि स्रोत का केवल 60 परसेंट पानी की परियोजना में इस्तेमाल किया जा सकता है. 40 परसेंट पानी हर हाल में नदी अथवा संबंधित स्रोत में ही छोड़ना पड़ता है। लेकिन, रिस्पना का 100 परसेंट पानी इस्तेमाल किया जा रहा है. करीब 60 परसेंट पानी हैड से कैनाल में छोड़ दिया जाता है जबकि बाकी 40 परसेंट पानी का पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. अगर ये नहर पूरी तरह डायवर्ट नहीं की जाती तो आज रिस्पना नदी भी जीवित होती. खैर अब तो रिस्पना नदी महज एक गंदा नाला बन चुकी है.
कैनाल रोड-2007 में इस नहर को अंडर ग्राउंड कर उसके उपर रोड बना दी गई. अब इस रोड को कैनाल रोड कहते हैं.
राजपुर रोड में अजंता होटल के सामने से ये नहर सीधे घंटाघर की तरफ बहती थी. अब तो खैर ये इसलिये नहीं दिखती, क्योंकि इसे पूरा ही अंडर ग्राउंड कर बड़े बड़े होटल और अन्य बिल्डिंग बना दी गई है. जिस प्रकार 17 वीं सदी में रिस्पना नदी को देहरादून घाटी के विकास की कीमत चुकानी पड़ी. वैसे ही 20 वीं सदी में इन नहरों को आधुनिक शहर के लिये बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. चलिये अब यहां से उस लोकेशन पर चलते हैं, जहां पर इस नहर के दो हिस्से होते है.
देहरादून की राजपुर कैनाल के रूट का मुख्य पड़ाव आता है दिलाराम चौक पर. यहां से एक शाखा इससे कट जाती है और वो यूकोलिप्टिस रोड होते हैं नैनी बैकरी चौराहे पर पहुंचकर सर्वे चौक की तरफ मुड़ जाती है. सर्वे चौक से वो सीधे आराघर और वहां से धर्मपुर चौक पहुंचती है. दिलाराम चौक से क्योंकि नहर का एक हिस्सा पूर्वी शाखा में कट जाता है, इसलिये अब इस सड़क को ईस्ट कैनाल कहते हैं. आज से बीस साल पहले यहां पर नहर खुली थी और उसको अंडर ग्राउंड नहीं किया गया था.
देहरादून की राजपुर कैनाल के रूट का मुख्य पड़ाव आता है दिलाराम चौक पर. यहां से एक शाखा इससे कट जाती है और वो यूकोलिप्टिस रोड होते हैं नैनी बैकरी चौराहे पर पहुंचकर सर्वे चौक की तरफ मुड़ जाती है.
सर्वे चौक से वो सीधे आराघर और वहां से धर्मपुर चौक पहुंचती है. जहां पर उससे रायपुर से आने वाली खलंगा कैनाल की एक ब्रांच मिल जाती थी. लेकिन इस ईस्ट कैनाल के सफर पर चलने से पहले हम हम आपको ले चलते है दिलाराम चौक से सीधे आगे जाने वाली मुख्य नहर की ओर. इस नहर की शाखा सीधे घंटाघर पर मौजूद मुख्य पोस्ट आफिस से होते हुये नहर वाली गली और वहां से सीधे दरबार साहिब के तलाब में जाती थी.
पलटन बाजार की कोतवाली के सामने ही नहर वाली गली है. आज गली तो है, लेकिन नहर दिखती नहीं है. क्योंकि देहरादून की उस एतिहासिक धरोहर को दफन कर दिया गया है. यहीं से नहर झंडा जी के तलाब में जाती है. यहां पर हर साल झंडा जी के मेले के दौरान तलाब को इसी नहर के पानी से भरा जाता है. देहरादून में गुरूरामराय झंडा साहिब की बड़ी मान्यता है. हर साल यहां झंडा चढ़ता है और मेला भी लगता है। जिसमें पूरे देश से खासकर पंजाब से संगत आती है. यहीं मौजूद तलाब साल के 12 महीने पानी से लबालब रहता था. इसी तलाब में साल 1903 में तत्कालीन वाइस रॉय लॉर्ड भी आये थे. इस तलाब में ही राजपुर नहर की इस शाखा का अंत हो जाता था.
अब हम चलते हैं ईस्ट कैनाल यानी ईसी रोड की ओर. ईस्ट कैनाल को लगभग सन 2000 में अंडर ग्राउंड कर उसके उपर रोड बना दी गई. पहले यहां से नहर खुली थी और इसी नहर से डालनवाला की कोठियों और लीची के बगीचों को पानी मुहैया कराया जाता था. लेकिन अब ये नहर पूरी तरह से अंडर ग्राउंड है. आराघर पहुंचकर ये ये नहर सीधे उस चौराहे पर पहुंचती है, जहां पर आजकल सब्जीमंडी है.
यहां पर पूर्वी दिशा से मालदेवता से रायपुर होते हुयेे आ रही खलंगा नहर की एक ब्रांच ईस्ट कैनाल से मिलती है। जबकि दोनों नहरों के मिलने के बाद फिर से एक और ब्रांच कट कर रेसकोर्स की तरफ चली जाती है। जबकि एक ब्रांच आगे की तरफ बढ़ती है। कुछ ही आगे चलने पर नहर फिर से दो हिस्सों में बंट जाती है। उसका एक हिस्सा कारगी चौक की तरफ जाता है। जबकि दूसरा माता मंदिर रोड होते हुये हरिद्वार बाईपास के नीचे से बंगालीकोठी पहुंचता है और वहां से दून यूनिवार्सिटी रोड होते हुये मोथरोवाला की तरफ चला जाता है।
ये तो अभी हमने आपको महज एक नहर यानी राजपुर कैनाल या जिसे देहरा कैनाल भी कहते है. उसका रूट बताया है. ऐसी देहरादून में कई और भी नहरें थी. मसलन, खलंगा नहर, जिसकी लंबाई 100 किलोमीटर है और मालदेवता से शुरू होकर केशरवाला, किददूवाला और रायुपर, हर्रावाला, बालावाला, जोगीवाला, बद्रीपुर, धर्मपुर तक विस्तार देती है. ऐसी ही बीजापुर, जाखन नहर, कटा पत्थर नहर भी थी। जो आज अपने वजूद में तो हैं, लेकिन सभी को जमीन के नीचे दफन कर दिया गया है.
जमीन के नीचे नहरों के दफन होने से देहरादून शहर को कई पर्यावरण संबंधी नुकसान भी हुये. मसलन, पहले जहां शहर में तापमान गर्मियों में तीस डिग्री से ज्यादा कम ही जाता था, वहीं अब ये 40 डिग्री तक पहुंचता है.
दूसरा सबसे बड़ा नुकसान हुआ पाक्षियों का. पिछले दस सालों में देहरादून में गर्मियों के मौसम में कौवे और बाज आसमान में उड़ते उड़ते गिर जा रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, ये सभी पक्षी गर्मियों में डिहाइडेशन के कारण मर रहे हैं. असल में पहले ये सभी पक्षी नहरों के किनारे पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लेते थे. लेकिन अब सभी नहरें अंडर ग्राउंड कर दी गई है तो पाक्षियों के लिये प्यास बुझाना मुश्किल हो गया है.
स्क्रिप्ट: मनमीत
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