ASUR. ये शब्द सुनते ही आपके दिमाग़ में संभवतः जो तस्वीरें उभरती होंगी, वो कुछ नकारात्मक शक्तियों यानी negative energies की होंगी. ऐसी तस्वीरें जिन्हें आपने तमाम तिलिस्मी धारावाहिकों से लेकर भूतहा फ़िल्मों तक में लोगों को डराते और उनके मन में ख़ौफ़ पैदा करते देखा होगा. अगर आप इंग्लिश में असुर शब्द को गूगल करेंगे तो भी आपकी फ़ीड में सबसे ऊपर अरशद वारसी अभिनीत असुर नाम की वो चर्चित web series (ASUR) ही आएगी जिसमें असुर एक नेगेटिव कैरेक्टर है. इस शब्द का अर्थ अगर आप हिंदी में तलाशना चाहेंगे तो रेख़्ता जैसी प्रतिष्ठित डिक्शनेरी आपको बताएगी कि असुर का अर्थ है ‘क्रूर, अत्याचारी, पापी, असभ्य, नीच वृत्ति का पुरुष, दैत्य, दानव या राक्षस.’ लेकिन क्या असुर शब्द के मायने हमेशा से ऐसे ही थे? अगर ऐसा है तो फिर वैदिक साहित्य में असुरों का उल्लेख सकारात्मक और गरिमामय अर्थों में क्यों दर्ज मिलता है? क्यों ऋग्वेद में कई-कई बार असुर शब्द इंद्र, अग्नि, सूर्य, वरुण और रूद्र जैसे देवताओं के लिए इस्तेमाल किया गया है? क्या हैं असुर शब्द के मायने? कौन थे असुर, कहाँ करते थे, किसे पूजते थे और उनकी कौन-सी परम्पराएँ थी जिनकी छाप हमें आज भी अपने समाज में मिलती है? क्या ये सच है कि पूरा हिमालयी क्षेत्र कभी असुरों, दानवों और दैत्यों का गढ़ हुआ करता था? असुरों का उत्तराखंड से क्या सम्बंध है और हमारे पहाड़ों में वो कौन-कौन सी जगह, प्रथाएँ या लोग हैं जिनके असुरों से सीधे-सीधे सम्बंधित होने के साक्ष्य आज भी मिलते हैं? इन तमाम सवालों पर आज विस्तार से चर्चा करेंगे.