इस हफ़्ते अपने उत्तराखंड का जब जलम-बार मनाया जा रहा था तो दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ बार-बार याद आ रही थी कि ‘कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए, कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए.’ जिन शहीदों ने उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अपने प्राण त्याग दिए, उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके सपनों का राज्य जब बनेगा तो ऐसा भी दिन आएगा कि राज्य स्थापना की वर्षगाँठ के दिन राज्य के युवा ‘प्रदेश सरकार हाय-हाय’ और ‘मुख्यमंत्री मुर्दाबाद’ के नारे लगाने को मजबूर होंगे.