संजीव चौहान उस वक्त 16 साल के थे जब मसूरी गोलीकांड हुआ. मूल रूप से टिहरी के कांडाखाल गांव निवासी संजीव का परिवार तब मसूरी के बेकरी हिल में रहता था. संजीव उस वक्त हाईस्कूल के छात्र थे जब इस इस गोलीकांड में उन्हें पांच गोलियां लगी. उनके साथ ही 18 अन्य लोग इस गोलीकांड में पुलिस की गोलियों से ज़ख़्मी हुए और 6 लोग शहीद हुए. एक सितंबर 1994 को खटीमा गोलीकांड हुआ था,
जिसमें सात लोग शहीद हुए. ये खबर जैसे ही मसूरी पहुंची, लोग आक्रोश और दुख से भर गए. स्वतः स्फूर्त आंदोलन तेज हुआ और लोग अपने घरों से निकल कर मसूरी किताब घर में जमा होने लगे. नारेबाज़ी करते हुए ये लोग मॉल रोड स्थित झूला घर पर पहुँचे ही थे कि पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दी. इस गोलीबारी में बेलमती चौहान, हंसा धनाई, बलबीर सिंह नेगी, धनपत सिंह, मदन मोहन ममगाईं और राय सिंह बंगारी शहीद हो गए. एक पुलिस उपाधिक्षक की भी इस गोलीकांड में मौत हुई.
साल 1994 में मसूरी के अलावा खटीमा, मुजफ्फरनगर, देहरादून, कोटद्वार, नैनीताल और श्रीनगर में भी पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई. लेकिन आज 27 साल बीत जाने के बाद भी उन दोषियों को सजा नहीं हुई है जिन्होंने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई थी. कुल 40 से ज़्यादा लोगों की शहादत के दोषी अधिकारियों पर कुछ मुक़दमे दर्ज तो हुए थे, लेकिन वो आज भी न्यायालयों में लंबित ही हैं.