नैनीताल में लगा एशिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप.

  • 2022
  • 6:32

अंतरिक्ष की रहस्यमयी दुनिया में झांकने वाली एक नई खिड़की अभी-अभी खुली है. ये खिड़की खुली है उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के देवस्थल में. यहां एशिया की सबसे बड़ी मिरर टेलिस्कोप लगी है जिसने हाल ही में अनंत आकाश से कुछ तस्वीरें उतारी हैं. हमसे लगभग 45 मिलियन light years की दूरी वाली Galaxy NGC 4274 और कुछ तारों की तस्वीरें इस टेलिस्कोप ने क़ैद की हैं. यह टेलीस्कोप इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि यह भारत का पहला और एशिया का सबसे बड़ा मिरर टेलीस्कोप है. आज आपको इसी टेलिस्कोप के बहाने ले चलते हैं दूरबीनों की दुनिया के एक दिलचस्प सफर पर.

भारत में खगोल शास्त्र यानी astronomy का इतिहास बहुत पुराना है. वैदिक काल से ही हमारे देश का astronomy के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा है. आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर और भास्कर जैसे कई दिग्गज हैं जिन्होंने astronomy aur astrology के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है. खगोल विज्ञान की कई थियोरीज़ और उपकरणों का अविष्कार भी भारत में हुआ.

आधुनिक भारत की बात करें तो कोडईकनाल, कयालु, ऊटी, हैदराबाद, पुणे, माउंट आबू, उदयपुर, नैनीताल, और लद्दाख में वर्ल्ड क्लास Astronomical Observatories हैं. Observatory यानी वेधशाला. इन वेधशालाओं को अमूमन काफ़ी ऊँचाई वाले और ऐसे पहाड़ी इलाक़ों में बनाया जाता है जहां बादल कम बनते हों और आसमान साफ रहता हो.

उत्तराखंड में भी ऐसी ही एक वेधशाला नैनीताल जिले में Manora peak पर स्थित है जिसका नाम है ARIES यानी Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences. पहले ये एक state observatory हुआ करती थी जिसे साल 1954 में वाराणसी में लगाया गया था. लेकिन इसके अगले ही साल यानी 1955 में इसे नैनीताल शिफ़्ट कर दिया गया.

नैनीताल के ARIES में चार प्रमुख टेलिस्कोप हैं. 1.04m, 1.3m और 3.6m aperture के तीन टेलीस्कोप और एक 4m liquid mirror telescope. ये जानकारी अगर तकनीकी रूप से ज़्यादा भारी हो गई तो इसे थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं. Aperture यानी टेलीस्कोप का वो भाग जहां से लाइट अंदर आती है. जितना बड़ा अपर्चर उतनी ज्यादा लाइट, यानी उतना ही ब्राइट या साफ आपको आसमान दिखेगा.

आपने कई बार यह गौर किया होगा कि रात में लाइट चले जाने पर आपको आसमान और तारे बेहतर नज़र आने लगते हैं. आपके आस-पास जितना अंधेरा होता है, आसमान उतना ही साफ दिखता है. जबकि रोशनी वाली जगहों से आसमान धुंधला नज़र आता है. ऐसा light disturbance के चलते होता है. नैनीताल शहर में भी जैसे-जैसे आबादी, व्यापार और बाज़ार बढ़ता गया, वहां की चमक-धमक भी तेजी से बढ़ने लगी. इसका असर वहां की वेधशाला पर भी पड़ा. इसीलिए ARIES ने शहर से कुछ किलोमीटर दूर एक नई celestial site को खोजा जिसे देवस्थल नाम से जाना जाता है. शहर से दूर होने के चलते इस जगह से आसमानी हलचलों पर नज़र रखना ज्यदा मुफ़ीद है.

देवस्थल साइट में साल भर में लगभग 200 रात आसमान साफ रहता है. आमतौर पर यहां बादल भी कम बनते है क्योंकि ये observatory काफी ऊंचाई पर है. लिहाज़ा अक्सर बादल भी इसकी निचली सतह तक ही बनते हैं. देवस्थल में 3.6 मीटर प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इसका डिजाइन बेल्जियम कंपनी AMOS को दिया गया. ARIES और AMOS ने इस प्रोजेक्ट पर मिलकर काम किया 30 मार्च 2016 को बेल्जियम की मदद से भारत का सबसे बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप, अपने उत्तराखंड के देवस्थल में स्थापित हुआ.

अब इसी देवस्थल में देश का पहला और एशिया का सबसे बड़ा liquid mirror telescope भी स्थापित हो चुका है जो asteroids, supernovae, space debris, और तमाम celestial objects यानी अंतरिक्ष में तैरने वाले उल्का-पिंडों का अध्ययन करेगा. ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक liquid mirror telescope को पूरी तरह से सिर्फ़ खगोलीय घटनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले जो भी कुछ लिक्विड टेलीस्कोप बने हैं वो या तो सैटेलाइट को ट्रैक करने के लिए बनाए गए हैं या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अभियानों के लिए.

दूरबीनों की दुनिया में थोड़ा और गहरे उतरें तो हम ये भी समझ पाते हैं कि आख़िर एक लिक्विड टेलीस्कोप बाक़ी के पारंपरिक टेलिस्कोप से अलग कैसे है. असल में पारम्परिक टेलीस्कोप को एक celestial body यानी किसी ग्रह, उपग्रह आदि पर प्वाइंट किया जाता है ताकि उसका नज़दीक से अध्ययन किया जा सके. जबकि लिक्विड मिरर टेलीस्कोप आसमान के एक टुकड़े की इमेज दिखाता है जिसमें कई celestial bodies होती हैं. यानी ये कई सारे तारों, supernova explosions, asteroids यानी उल्कापिंडों से लेकर space debris यानी अंतरिक्ष के फैले कूड़े तक को एक साथ कैद कर सकता है.

लिक्विड मिरर टेलीस्कोप में mercury यानी पारा जैसे किसी reflective liquid का इस्तेमाल किया जाता है. पारे की light reflecting capacity काफी ज्यदा होती है. मतलब जितनी लाइट इस पर पड़ती है करीब उतनी ही ये वापस फेंक देता है. लिक्विड मिरर टेलीस्कोप में करीब 50 लीटर मर्करी को एक container में एक निर्धारित गति में घुमाया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान मर्करी एक पतली layer में फैल जाती है और paraboloid shape की एक reflecting सतह बनाती है जो बिलकुल शीशे की तरह काम करती है. लगभग 4 मीटर के डायमीटर वाल ये सरफेस लाइट को जमा करने और उसे फोकस करने में सक्षम होता है.

लिक्विड मिरर टेलीस्कोप की एक ख़ासियत ये भी है कि जहां कन्वेंशनल टेलीस्कोप का ऑपरेशनल टाइम सीमित होता है वहीं लिक्विड मिरर टेलीस्कोप महीनों तक लगातार काम करता है. नैनीताल में लगा टेलीस्कोप भी अक्टूबर 2022 से आने वाले 5 सालों तक हर रात आसमान की इमेज कैप्चर करेगा. सिर्फ़ जून से अगस्त तक मानसून के दौरान इसे नमी से बचाने के लिए बंद रखा जाएगा. इस प्रोजेक्ट के लिए क़रीब 40 crore की फंडिंग कनाडा और बेल्जियम ने संयुक्त रूप से की है. अनुमान है कि यह टेलीस्कोप 10 से 15 जीबी का डाटा जेनरेट करने में सक्षम है. उम्मीद है कि आने वाले सालों में इसकी मदद से हम अंतरिक्ष के रहस्यों को कुछ और बेहतर समझ पाएँगे.

स्क्रिप्ट : आकांक्षा

 

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