खनन और शराब के बाद अब शिक्षा में भी माफिया-राज?

  • 2025
  • 16:33

बीते हफ़्ते की दो खबरों से शुरुआत करते हैं. एक वो ख़बर जिस पर खूब चर्चा होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हुई और दूसरी वो खबर जो बनवाई ही इसलिए गई थी कि उसी पर सारी चर्चा हो, सो हुई भी. बल्कि सिर्फ़ चर्चा ही नहीं हुई इस खबर के ऐसे लर्के-तर्के लगा दिए गए कि सड़कों पर लगे होर्डिंग से लेकर अख़बारों के पन्नों तक और टीवी की बहसों से लेकर सोशल मीडिया के छर्रों तक, इसी खबर पर मिसा दिए गए. ये खबर थी उत्तराखंड के कई जगहों के पुनर्नामकरण संस्कार की जिसे पूरी भव्यता से निभाते हुए धामी सरकार ने भौं-कुछ फरका देने का कीर्तिमान रच दिया. जबकि इस कीर्तिमान के यशगान तले जिस जो खबर दबा दी गई वो ये थी कि प्रदेश में निजी स्कूलों की दादागिरी अपने चरम पर जा पहुंची है और प्रदेश में पूरी शिक्षा व्यवस्था ही अब एक संगठित अपराध बन चुकी है जिसमें नए-नए शिक्षा माफिया पनप रहे हैं.

कितना अजीब सा लगता है ये शब्द ‘शिक्षा माफिया’ कहने और सुनने में भी लेकिन हक़ीक़त यही है कि शिक्षा व्यवस्था अब माफ़ियाओं का संगठित अड्डा बन चुकी है. इस पहलू पर अभी विस्तार से बात करेंगे लेकिन उससे पहले थोड़ा-सा पोस्ट-मोर्टम उस सरकारी खबर का भी कर लेते हैं जिसे अपनी उपलब्धि बताकर धामी जी ने ऐसी-ऐसी रील बनवाई कि मेलोड्रॉमा के मंडांड में ढोल ही फोड़ दिया.

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