गढ़वाली और कुमाऊनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग काफी समय से उठती रही है. अभी हाल ही में दिल्ली के जंतर मंतर पर भी उत्तराखंड के कई लोगों ने इस मांग को लेकर प्रदर्शन किया. लेकिन उत्तराखंड की भाषाओं की ऐसी उपेक्षा आख़िर है क्यों, क्यों गढ़वाली और कुमाऊनी भाषा आज तक संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं बना सकी, क्या ये भाषाएँ इस अनुसूची में शामिल होने की शर्तें पूरी करती भी हैं या नहीं और इस तर्क में कितना वजन है कि गढ़वाली और कुमाऊनी कोई भाषा नहीं बल्कि सिर्फ़ बोलियाँ हैं. इन तमाम मुद्दों पर विस्तार से बात करेंगे आज की व्याख्या में…