तारीख थी 26 जनवरी और दिन था रविवार. गणतंत्र दिवस की इस रात उत्तराखंड के दूरस्थ इलाके का एक पूरा गांव जब चैन की नींद सो रहा था, तभी एक विनाशकारी आग ने कई परिवारों के सपनों को राख में बदल दिया. मोरी ब्लॉक के सावणी गांव में लगी इस आग में नौ मकान पूरी तरह जलकर खाक हो गए और 25 परिवार बेघर हो गए. आज, वे अपने ही गांव में बेघर होकर ठंड की चपेट में रातें बिता रहे हैं. लेकिन ये सिर्फ एक रात, एक गांव या कुछ परिवारों की त्रासदी नहीं है. बल्कि ये एक भयावह सिलसिला है जो पिछले लगभग दो दशक से मोरी ब्लॉक के किसी न किसी गांव को अपनी चपेट में लेता आ रहा है. हर साल ही किसी न किसी गांव में ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिनमें सैकड़ों लोग बेघर हो जाते हैं, पर समस्या जस की तस बनी रहती है.
आखिर क्यों पहाड़ के इन गांवों में आग की ये घटनाएं लगातार हो रही हैं? इन हादसों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, और क्यों यह स्थिति हर साल और गंभीर होती जा रही है, इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से तलाशते हैं.