आज से करीब आधी सदी पहले, उत्तराखंड के कुछ गांव इतने समृद्ध हुआ करते थे कि उन्हें ‘छोटा विलायत’ और ‘Mini Europe’ तक कहा जाता था. इन गांवों की सम्पन्नता ऐसी थी कि ये सिर्फ़ उत्तराखंड के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के सबसे अमीर गांवों में शामिल थे. इस समृद्धि का मूल कारण था भारत और तिब्बत के बीच होने वाला वो व्यापार (India – Tibet Trade) जिस पर इन गांव वालों का एकाधिकार होता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि गर्ब्यांग गांव के रहने वाले खेम्बू नाम के एक व्यक्ति ने तो उस जमाने में कलकत्ता जाकर पानी का जहाज़ तक ख़रीद लिया था. इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि तिब्बत व्यापार के चलते इन लोगों की समृद्धि कितनी व्यापक रही होगी. लेकिन 1960 के दशक में हुए भारत-चीन युद्ध के चलते ये व्यापार बंद हो गया और इसके साथ ही इन तमाम गांवों का स्वर्णिम दौर भी ढलने लगा. 90 के दशक में ये व्यापार एक बार फिर से शुरू तो हुआ लेकिन पहले जैसी समृद्धि कभी नहीं लौट सकी. फिर कुछ मार आपदाओं की भी पड़ी और कभी ‘छोटा विलायत’ कहा जाने वाला गर्ब्यांग गांव ‘The Sinking Village’ बन गया. लेकिन पूरे भोटांतिक क्षेत्र ने वैभव और ऐश्वर्य का जो स्वर्णिम दौर देखा है, उसकी छाप आज भी इस समाज में देखी जा सकती है. कैसे होता था तिब्बत व्यापार, इसमें किन-किन वस्तुओं का बोलबाला हुआ करता था, किस दौर में ये व्यापार अपने चरम पर पहुंचा और कैसे इसने दो संस्कृतियों को सदियों तक जोड़े रखा, जानेंगे इन तमाम सवालों के जवाब.