कैसे रूपए की इकाई आना-पाई से बदलकर पैसे हो गई?

  • 2022
  • 06:42


दुनिया की तरह भारत में भी रूपए-सिक्कों का इतिहास काफी पुराना है. एक वक्त था जब वस्तु विनियम या बारटर सिस्टम से जनता खरीद फरोख्त करती थी. हालांकि भारत उन शुरूआती सभ्यताओं में से एक है, जहां मुद्रा के रूप में सिक्कों का प्रचलन छठवीं सदी में उपयोग में आ गया था. जबकि भारत में ही ऐसे कई इलाके हैं, जहां अभी भी मुद्रा का उपयोग व्यापार में कम होता है.

मसलन, हिमालय के सीमांत इलाकों में तिब्बत से होने वाले व्यापार में हाल फिलहाल तक वस्तु के बदले वस्तु यानी वस्तु विनिमय के रूप में व्यापार होता रहा है. भारत में रूपया 1540 में अधिकारिक रूप से शेरशाह सूरी के शासन काल में अस्तित्व और उपयोग में पहली बार आया.

रूपया संस्कृत में ‘रूप्यकम’ से बना एक शब्द है. जिसका मतलब होता है चांदी का रूप. पहले ये चांदी के सिक्के के रूप में होता था. इसलिये इसे कहते थे चांदी का रूप. बाद में ये अन्य धातुओं से भी बनाया जाने लगा.

बीसवीं सदी में तो भारतीय रूपया फारस की खाड़ी में भी उपयोग में लाया जाता था. बाद में सिक्कों के रूप में कौड़ियों में, दमड़ियों में, धेलों में, आनों में व्यापार होता था. लेकिन रूपए की ये इकाई कैसे वक्त के साथ आना-पाई से बदलकर पैसे में तब्दील हो गई, इसकी भी एक रोचक कहानी है.

चलिए सबसे पहले एक नज़र डाल लेते हैं, उस वक्त की मुद्रा प्रणाली पर.

3 फूटी कौड़ी – 1 कौड़ी
10 कौड़ी – 1 दमड़ी
2 दमड़ी – 1 धेला
1 धेला – 1.5 पाई
3 पाई – 1 पैसा
4 पैसा – 1 आना
16 आना – 1 रूपया

पहली बार अमेरिका ने साल 1792 में अपनी मुद्रा के लिए दशमलव प्रणाली या डेसीमल सिस्टम का तरीका अपनाया. इसके तहत मुद्रा को न्यूनतम मूल्य की सौ इकाइयों में विभाजित किया जाता है. आसान शब्दों में कहें तो 100 सेंट्स का एक डॉलर होता था.

अमेरिका के बाद ये प्रणाली इतनी लोकप्रिय हुई कि ब्रिटेन को छोड़कर यूरोप के सभी देशों ने इसे अपना लिया. भारत में तब एक रुपए में 16 आने हुआ करते थे.

इस प्रणाली में एक आना, चार पैसे के बराबर और एक पैसा, तीन पाई के बराबर होता था. इस तरह पाई इसकी सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी. क्योंकि इंग्लैंड में उस समय इसी से मिलती जुलती मुद्रा प्रणाली थी, इसलिए अंग्रेजी शासन के समय इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की गई.

आज़ादी के तुरंत बाद भारत में मौद्रिक विनिमय यानी पैसों के ट्रांजेक्शन्स को तर्कसंगत बनाने के लिए इस बात की ज़रूरत महसूस की जाने लगी थी कि रुपए के लिए दशमलव प्रणाली लागू की जाए. लेकिन यहां एक चुनौती थी, वो ये कि दशकों से प्रचलित आना-पाई प्रणाली को एक झटके में खत्म नहीं किया जा सकता था. इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम साल 1955 में उठाया गया.

इसी साल संसद ने सिक्का ढ़लाई संशोधन कानून पारित किया. जिसके तहत ये व्यवस्था दी गई कि रुपए को सौ भागों में डिवाइड करके इसकी न्यूनतम इकाई एक पैसा बना दी जाए और नए सिक्कों को इसी आधार पर ढाला जाएगा. यानी नए सिक्के पांच, दस, पच्चीस और पचास पैसों के बनाए गए.

ये एक्ट पारित तो हो गया लेकिन इसके बाद भी आना-पाई प्रणाली को खत्म करने की दिशा में कई दिक्कतें थीं. पहली तो ये कि इतनी विशाल जनसंख्या को इस बदलाव के बारे में जानकारी कैसे दी जाएगी. दूसरी समस्या सरकारी सेवाओं जैसे डाक-तार और रेलवे जैसे विभागों की नई दरें तय करने की थी. इसके अलावा यह भी चिंता का विषय था कि कारोबारियों को आना-पाई प्रणाली खत्म होने के बाद अपने सामानों की मनमानी कीमतें तय करने से कैसे रोका जाए?

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने इन समस्याओं को दूर करने के लिए एक विस्तृत गुणन चार्ट छपवाकर देश के तमाम डाकघरों में उपलब्ध कराए थे ताकि लोग इनके आधार पर मुद्रा विनिमय कर सकें. गुणन चार्ट यानी ऐसी एक टेबल जिसके माध्यम से आप आसानी से समझ सकते थे कि कितने पैसे बराबर कितने रूपए. 

इन तैयारियों के बाद साल 1957 में भारत सरकार ने नए सिक्के जारी कर दिए. इन पर ‘नए पैसे’ लिखा गया था. इन सिक्कों के बाज़ार में आने के साथ ही देश में कई दिलचस्प घटनाएं भी देखने को मिलीं.

कहा जाता है कि दिल्ली के जनरल पोस्ट ऑफिस में तब पहले सिक्के को पाने के लिए तकरीबन दस हजार लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी. इसे संभालने के लिए विशेष सुरक्षा इंतजाम करने पड़ गए थे. वहीं, कलकत्ता में कई लोगों ने नए सिक्कों का विरोध करते हुए कुछ पोस्ट ऑफिसों में आगजनी कर दी थी. इन लोगों का कहना था कि सरकार उन्हें महंगी कीमत पर पोस्टकार्ड और लिफाफे दे रही है.

1963-64 के आसपास जब नए पैसे पूरी तरह प्रचलन में आ गए तब सरकार ने इन सिक्कों में छपे ‘नए पैसे’ से नए शब्द हटा दिया. इस बारीक बदलाव के साथ नए सिक्के प्रचलन में आ गए. 30 जून 2011 को वित्त मंत्रालय ने 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे के सिक्कों का संचालन बन्द कर दिया.

अब 1 रूपए, 2 रूपए, 5 रूपए, 10 रूपए और 20 रूपए के सिक्के प्रचलन में हैं. 1 रूपए का सिक्का 1962 से चलन में आया, 2 रूपए का सिक्का 1982 से, 5 रूपए का सिक्का 1992 से और 10 रूपए का सिक्का 2006 से चलन में आया. इसके अलावा 20 रूपए का सिक्का 2020 से चलन में आया है.

लेकिन कुछ ऐसी जानकारी आपको बता देते हैं जो आपके लिये जरूरी हो सकती है. मसलन, अगर कोई व्यक्ति कोई भी ऐसा सिक्का लेने से इनकार करता है, जो चलन में है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है. आरोपी शख्स के खिलाफ भारतीय मुद्रा अधिनियम एवं आईपीसी के तहत कार्रवाई होगी. इस बारे में रिजर्व बैंक में भी शिकायत की जा सकती है.

उसी तरह ऐसा भी नहीं है कि आप कोई महंगी वस्तु खरीदने बाजार गये और आप इस बात पर अड़ गये कि मैं इसका पूरा भुगतान सिक्कों में ही करूंगा. उदाहरण के तौर पर आप बाजार में स्कूटर खरीदने गए. शोरूम संचालक ने उसकी कीमत डेढ़ लाख रूपये बताई और आपने उसे सिक्कों का डेढ़ लाख रूपयों से भरा कट्टा दे दिया. असल में, सिक्का अधिनियम में सिक्कों से कितनी बड़ी राशि का भुगतान किया जाए, इसको लेकर भी नियम है. एक रुपये से ऊपर के सिक्कों से सिर्फ 1000 रुपये तक का भुगतान किया जा सकता है. यानी इससे ज्यादा का भुगतान सिक्कों में करना कानूनी अपराध है. और ऐसा करने पर आपके खिलाफ़ मामला दर्ज हो सकता है.

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