‘दैणा होयां खोली का गणेश’
ये मशहूर गीत तो आपने खूब सुना होगा. कभी मंगल कार्यों में, कभी सांस्कृतिक संध्याओं में तो कभी पहाड़ की याद आने पर नेगी जी की जादुई आवज में ये गीत आप तक अक्सर पहुँचता होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गीत में इस्तेमाल हुए शब्द ‘खोली का गणेश’ और ‘मोरी का नारैण’ का क्या मतलब है?
अगर आप पहाड़ों में रहे हैं तब तो आप शायद ये जानते होंगे, लेकिन अगर भी मुझ जैसे उन लोगों में शामिल हैं जिनकी पिछली पीढ़ी ही पहाड़ों से पलायन कर गई थी तो बहुत संभावना है कि ये गीत कई बार सुनने के बाद भी आप न जानते हों कि आख़िर खोली के गणेश और मोरी के नारैण क्या हैं.
तो चलिए मैं आज आपको इन शब्दों का मतलब बताती हूँ.
आपने पारंपरिक पहाड़ी घर तो देखे ही होंगे. खूबसूरत नक़्क़ाशी, बड़े-बड़े पत्थरों की पठाल और लड़की की तिबरी वाले पहाड़ी घर. इन घरों का जो मुख्य द्वार होता है, जहां से अक्सर ऊपरी मंज़िल की सीढ़ियाँ भी शुरू होती हैं, उसी को ‘खोली’ कहा जाता है. और इस खोली पर विराजमान होते हैं गणेश भगवान, जिनका ज़िक्र इस गीत में किया गया है. इन्हें ही खोली का गणेश कहा जाता है.
मोरी के नारैण का सम्बंध भी इन्हीं पहाड़ी शैली के घरों से है. इनके मुख्य द्वार को खोली कहते हैं और खिड़कियों को मोरी. इन मोरियों पर सुंदर नक्काशी वाले विष्णु भगवान यानी नारायण विराजमान होते हैं. उन्हें ही याद करते हुए इस गीत में मोरी का नारैण कहा गया है.
और दैणा होयां का मतलब है कि ‘आप प्रकट हों, आपकी कृपा दृष्टि हम पर बनी रहे.’