राजुला और मालूशाही : पहाड़ की सबसे चर्चित प्रेम कहानी

  • 2024
  • 15:05

अगर आपसे कहा जाए कि प्रेम क्या होता है, तो आप क्या कहेंगे? ज़ाहिर सी बात है प्रेम को लेकर आप सबकी परिभाषाएँ अलग-अलग होंगी और हर परिभाषा अपने आप में अद्भुत भी. शायद इसलिए हमारे सामने राधा-कृष्ण से लेकर हीर-रांझा और सोहणी महिवाल की लोकप्रिय प्रेम कहानियां हैं. ऐसी एक प्रेम कहानी हमारे उत्तराखंड से भी है. जिसके कई सारे रूप सुनने को मिलते हैं. जी हां, ये प्रेम कहानी है राजुला और मालूशाही की. जिसका एक वर्ज़न आज घुघती-बासूती पर.

तो कहानी शुरू होती है कुमाऊं के बैराठ यानी चौखुठिया से.. जहां कत्यूर वंश के राजा दुलाशाही का राज था. राजा के पास सब कुछ था, सिवाय एक संतान के. जिसकी वजह से वो और उनकी रानी धर्मा, बहुत दुखी रहते थे. एक रात रानी के सपने में भगवान बागनाथ आते हैं, जो उनसे कहते हैं कि उनके भाग्य में संतान सुख है. सपने में भगवान के दर्शन पाकर रानी के मन में आस जागती है और वह बागनाथ जी के दर्शन के लिए राजा के साथ बागेश्वर के लिए निकल पड़ती है. वहां पहुंचकर उनकी मुलाकात एक और दंपत्ति से होती है, जो राजा-रानी की तरह ही संतान प्राप्ति की मन्नत लेकर वहां आए थे. यह दंपत्ति भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उनकी पत्नी गांगुली थे.

कहते हैं दुख एक ऐसी चीज़ है जो हमें इश्वर और किसी अंजान इंसान दोनों के करीब ले आता है. यहां भी कुछ ऐसा हुआ. रानी का गांगुली का सूनापन उन दोनों को करीब ले आया. और फिर उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि अगर उनके बेटे-बेटी हुए, तो वे उनकी शादी करा देंगे. इस तरह नियति ने इस प्रेम कहानी की सबसे पहली नींव रखी.

समय बीता और भगवान बागनाथ के आशीर्वाद के बाद राजा दुलाशाही के घर राजकुमार मालूशाही और व्यापारी सुनपति के घर राजुला का जन्म होता है. लेकिन कुछ ही दिनों बाद एक मुसीबत दस्तक दे जाती है, राजा दुलाशाह को ज्योतिषी ने बताया कि ‘राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है. अब इसे बचाना है तो जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह करना होगा.’ राजा को अचानक सुनपत शौका और उनसे किया वादा याद आता है. वह फ़ौरन राजपुरोहित को सुनपत के देश रवाना कर देते हैं और आदेश देते हैं कि वह राजुला से ब्याह करने की बात तय कर आएं. राजपुरोहित के प्रस्ताव से सुनपति सहमत हो जाते हैं और फ़ौरन नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर दिया जाता है.

अब जब लगने लगता है कि सब ठीक हो गया है और प्रेम कहानी मुकम्मल हो गई है, तभी नियति एक नया अध्याय शुरू कर देती है. शादी के कुछ ही दिनों बाद राजा दुलाशाह की मृत्यु हो जाती है और इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए कुछ दरबारियों ने यह अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि जो बच्ची शादी के बाद अपने ससुर को खा गई उसके बैराठ में पाँव रखते ही अनर्थ हो जायेगा. इसलिये बड़े होने पर मालूशाही को यह बात न बताई जाए. राज्य में सभी लोग और रानी भी इस बात को मान जाते हैं और फैसला लेते हैं कि मालूशाही को राजुला के बारे में कभी नहीं बताया जाएगा.

वक़्त बीता और राजुला-मालूशाही जवान हो चले. दूसरी तरफ सुनपति शौका यह सोचकर परेशान होने लगे कि राजा दुलाशाह की ओर से कोई खोज-खबर क्यों नहीं आ रही है. एक दिन राजुला ने अपनी मां से सवाल किया कि– “मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी? पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा? देवों में कौन देव? राजाओं का कौन राजा और देशों में कौन देश?”

उसकी मां ने जवाब दिया –“दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो पृथ्वी को प्रकाशित करती है. पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, उसमें देवता रहते हैं. गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी है, जो सबके पाप धोती है. देवताओं में सबसे बड़े देव महादेव. और राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीला बैराठ”

मालूशाही और बैराठ का नाम सुनकर राजुला के मन में मानो बिजली सी कौंध गई. उसे ऐसा एहसास हुआ मानो बैराठ और मालूशाही से उसका कोई जन्मों का रिश्ता है. उसने तुरंत अपनी मां से कहा कि ‘मां! मेरा ब्याह रंगीले बैराठ में ही करना.’

राजुला की बात सुनकर उसकी माँ थोड़ा घबरा जाती है और राजुला की बात को अनसुना कर देती है. वक्त बीतता चला जाता है और वक्त के साथ राजुला की खूबसूरती के चर्चे भी चारों दिशाओं में फैल जाते हैं. इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौका को भी राजुला की खूबसूरती की भनक लग जाती है और वह उसे देखने के लिए सुनपति के घर चला जाता है. राजुला को देखकर विक्खीपाल मंत्रमुग्ध हो जाता है और अपने लिए राजुला का हाथ मांगता है. वह सुनपत को धमकाता है कि अगर उसने अपनी कन्या का विवाह उससे नहीं किया, तो वह उसके देश को उजाड़ देगा. 

इसी बीच, मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रूप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊँगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालुशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विक्खीपाल की धमकी, इन सब से दुखी होकर राजुला ने फैसला लिया कि वह खुद बैराठ जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी माँ से बैराठ का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी माँ ने कहा कि बेटी तुझे तो अब हूण देश जाना है, बैराठ के रास्ते से तुझे क्या मतलब?

माँ की बात सुनकर राजुला और परेशान हो जाती है, लेकिन राजुला को अपने सपने और अहसाल पर यकीन था. वह जानती थी कि उसका और मालूशाह का ज़रूर कोई रिश्ता है. बस इसी अहसास के साथ राजुला एक दिन रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर बैराठ की ओर चल पड़ती है. 

पहाड़ों को लांघकर और मन में प्रेम का विश्वास लिए राजुला बैराठ चली गई. इसी बीच मालूशाही ने भी शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात अपनी माँ के सामने रखी. राजुला का नाम सुनकर रानी के पाँव तले ज़मीन खिसक गई. वह सोच में पड़ गई कि जिस नाम को उन्होंने इतने सालों तक मालूशाही से छिपा कर रखा, आखिर मालूशाही के सामने वह नाम आया कैसे.. और सिर्फ़ नाम नहीं, बल्कि बात शादी की दीवानगी तक पहुंच गई है. डर और घबराहट रानी को घेर लेता है और इसी दौरान राजुला भी मालूशाही के राज्य में पहुंच जाती है. रानी को जैसे ही राजुला के आने की खबर लगती है, वह और घबरा जाती है और वैद्य को आदेश देती है कि वह मालूशाही को कोई जड़ी-बूटी देकर सुला दे. वैद्य ऐसा ही करते हैं और मालूशाही लंबी नींद में चला जाता है. इतने में राजुला, मालूशाही के पास पहुंच जाती है, लेकिन उसे उसका मालूशाह गहरी नींद में था.

उसने मालूशाही को जगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह जड़ी के असर की वजह से सोता रहा. निराश होकर राजुला ने उसे अपनी हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने रखकर रोते-रोते अपने पिता के घर लौट गई. जड़ी का प्रभाव खत्म होते ही मालूशाही की नींद खुल गयी. होश में आने पर मालू ने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी और वह पत्र भी पढ़ा जिसमें लिखा था कि ‘हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो नींद के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे किसी और के संग ब्याह रहे हैं.’ यह पढ़कर राजा मालूशाही टूट जाता है। राजुला के विवाह की ख़बर ने मानो उसे जीते जी मार देती है। उसे विश्वास नहीं होता कि उसकी अपनी माँ ने उसके साथ ऐसा किया. उसका मन उचट जाता है, लेकिन वह जानता था कि यह समय विलाप का नहीं बल्कि राजुला को हूण देश से वापस लाने का है और इसी खातिर वह गुरु गोरखनाथ की शरण में चला जाता है.

दरअसल हूण देश के लोग तंत्र-विद्या के महारथी थे और वह जानता था कि उनसे मुकाबला करना आसान न होगा. मालूशाही ने गोरखनाथ से हाथ जोड़ कर विनती की राजुला से मिलवाने में वो उसकी मदद करें। लेकिन गुरु गोरखनाथ भाँप चुके थे कि यह काम इतना आसान नहीं है, इसलिए उन्होंने मालूशाही से वापस जाकर राजपाठ संभालने को कहा। लेकिन, मालूशाही कहां मानने वाला था. वह प्रेम में था. वह प्रेम जो उसके जीवन का मकसद और मर्म बन गया था। वह राजुला का दुख भी समझ रहा था और उसे इस तरह अकेले कैसे छोड़ सकता था.

मालू का प्रेम देखकर गुरु गोरखनाथ पिघल जाते हैं और मालूशाही को दीक्षा देकर, ‘बोक्साड़ी विद्या’ सिखाते हैं। उन्होंने मालूशाही को वे तंत्र-मंत्र भी सिखाए जिससे वह हूण और शौका देश के विष से बच सके। इसके बाद मालूशाही ने राजुला से मिलने के लिए राजपाट छोड़ा, सर मुंडाया, जोगी का वेश धर लिया और धूनी की राख शरीर में मल कर जोगी का वेश धर लिया। मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुँचा, साथ में चालाकी से अपनी कत्यूरी सेना भी लेकर गया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुँचा, वहाँ बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खीपाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने भिक्षा के लिए आवाज लगाई और उसके सामने गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई। लेकिन जोगी एकटक राजुला को देखता रह गया, उसने अपने स्वप्न में देखी राजुला को सामने देखा, तो अवाक रह गया। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि तभी वह बोल पड़ता है,“अरे रानी, तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहाँ कहाँ से आ गई?” तभी राजुला ने जोगी की ओर अपना हाथ बढ़ाया और अपने हाथ की रेखाएँ देखकर भाग्य बताने को कहा। जोगी ने कहा कि वो बिना नाम-ग्राम जाने हाथ नहीं देखेगा. 

राजुला ने उसे बताया, “मैं सुनपति शौक की लड़की राजुला हूँ, अब बता जोगी, मेरा भाग्य क्या है.” जोगी बने मालूशाही ने प्यार से राजुला का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा “तेरे भाग्य में तो रंगीलो बैराठ का मालूशाही था.”

तो राजुला ने रोते हुए कहा, “हे जोगी, मेरे माँ-बाप ने तो मुझे जानवरों की तरह विक्खीपाल के पास हूण देश भेज दिया.” इसके बाद मालूशाही अपना जोगी वेश उतारकर कहा, “मैंने तेरे लिए ही जोगी वेश लिया है राजुला, मैं तुझे यहाँ से ले जाने आया हूँ.”

राजुला-मालूशाही, दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया. उनके लिए वह पल मानो रुक सा गया था. राजुला का यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने उसका मालूशाही खड़ा है. दरअसल, राजुला का विश्वास कहीं न कहीं डगमगा गया था. उसे लगने लगा था कि उसका प्यार छलावा था. लेकिन मालूशाही को ऐसे सामने देखकर उसका मन दृढ़ हो गया. वह समझ गई कि उसका प्यार सच्चा था और अब उन्हें साथ होने से कोई नहीं रोक सकता. वहीं, हूण राजा विक्खीपाल को मालूशाही के चेहरे और हाव-भाव से उसके राजा होने का संदेह हो गया और अंदेशा होने पर वो मालूशाही और उसके साथियों को मार देने की योजना बनाने लगा। राजा विक्खीपाल ने अपने सेवकों से जोगी का रूप लिए मालू और उसके साथी साधुओं के लिए हलवा-पूरी, खीर वगैरह खिलाने को कहा और मालूशाह की खीर में जहर मिलाकर उन सबको बेहोश कर दिया. इस हादसे की सूचना मिलते ही गुरु गोरखनाथ ने एक सेना के साथ हूण देश जाकर अपनी बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर के मालू को जीवित कर दिया। फिर मालूशाही ने हूण राजा विक्खीपाल को उसकी सेना समेत मार गिराया.

इसके बाद मालू ने अपनी विजय का संदेश बैराठ भिजवाया, जिसके बाद राज्य को राजुला रानी के स्वागत के लिए सजाया गया. इसके बाद, मालूशाही बैराठ पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम के साथ राजुला से शादी रचाई और दोनों हंसी-खुशी साथ रहकर प्रजा की सेवा करने लगे. सच ही कहा गया है, यह इश्क नहीं आसान इतना समझ लीजिए. एक आग का दरिया है और डूब के जाना है.

तो यह थी हमारे उत्तराखंड की प्रेम कहानी जिसमें त्याग, बलिदान और कुछ कर गुज़रने की हिम्मत दिखती है. उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आई होगी. तो चलिए जाते-जाते एक सवाल है कि आपके लिए प्रेम क्या है?

 

स्क्रिप्ट: प्रियंका गोस्वामी

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