कहानी उत्तराखंड के कुख्यात गैंगस्टर प्रकाश पांडे उर्फ़ ‘पीपी’ की

  • 2022
  • 13:55

नैनीताल की माल रोड की एक दीवार पर मोस्ट वांटेड अपराधी का एक पोस्टर चस्पा था. सूट-बूट पहने अधेड़ उमर का एक आदमी बड़े गौर से इस पोस्टर को देख रहा था. पशोपेश में पड़ा यह आदमी लगभग बीस मिनट तक बारीकी से पोस्टर को देखने के बाद अचानक चौंका और फिर तेज कदमों से नैनीताल कोतवाली की तरफ़ बढ़ा. वहां पहुँचते ही उसने कोतवाल से सवाल किया कि शहर भर में जिस कुख्यात अपराधी के पोस्टर लगे हैं, उसका नाम क्या है? कोतवाल ने जवाब दिया, ‘ये प्रकाश पांडे है. हल्द्वानी ज़िले का एक बदमाश जो इन दिनों शराब के अवैध धंधे और बदमाशी से अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.’ कोतवाल ने यह भी बताया कि कुछ ही दिनों पहले इस कुख्यात ने रमेश बंबइया नाम के बड़े गैंगस्टर पर गोलियां चलाई हैं और इन दिनों ये फ़रार है.

कोतवाल की बात सुनकर वो व्यक्ति मुस्कुराया और बोला, ‘कोतवाल साहब यह आदमी प्रकाश पांडे नहीं बल्कि बॉम्बे अंडरवर्ल्ड का कुख्यात डॉन और छोटा राजन का राइट हैंड बंटी पांडे है.’ यह सुनते ही कोतवाल समेत पूरी कोतवाली के मानो पैरों तले जमीन खिसक गई.

सूट-बूट वाला यह आदमी मुंबई क्राइम ब्यूरो का एंकाउंटर स्पेशलिस्ट था जो अपने बच्चों के साथ छुट्टियां मनाने नैनीताल आया था. उसने नैनीताल की दीवारों पर जब बंटी पांडे के पोस्टर देखे तो वह खुद बेहद हैरान था कि मुंबई के इस कुख्यात की तलाश आख़िर नैनीताल में क्यों हो रही है. यह बात न तो वो जानता था और न ही नैनीताल पुलिस कि मुंबई की आर्थर जेल से फ़रार हुआ बंटी पांडे और नैनीताल की ज़िला जेल से फ़रार हुआ प्रकाश पांडे असल में एक ही आदमी था. और दो राज्यों की पुलिस जिस बंटी पांडे उर्फ़ प्रकाश पांडे उर्फ़ पीपी को अपने-अपने राज्य में तलाश रही थी वो उस वक्त न तो महाराष्ट्र में था और न ही उत्तर प्रदेश में. बल्कि वो तमाम पुलिस अधिकारियों को चकमा देते हुए अपनी गर्लफ़्रेंड के साथ जा पहुंचा था एशिया के दूसरे छोर पर बसे छोटे-से देश वियतनाम में.

बारामासा की स्पेशल सिरीज़ कुख्यात के इस एपिसोड में देखिए प्रकाश पांडे उर्फ पीपी के गैंगस्टर बनने की कहानी .

प्रकाश पांडे का परिवार मूल रूप से खनौइया गांव का था और रानीखेत शहर में आ बसा था. प्रकाश तब छोटा ही था जब उसकी मां का देहांत हो गया और फौज से रिटायर उसके पिता लक्ष्मी दत्त पांडे ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां ले आने के चलते उसकी अपने पिता से नाराज़गी रहती, जो एक दिन इतनी बढ़ गई कि प्रकाश अपने पिता को छोड़ गांव चला गया और अपने मामा-मामी के साथ रहने लगा.

बचपन की इस उठापटक ने प्रकाश पांडे को विद्रोही स्वभाव का किशोर बना दिया था. चेहरे से शांत दिखने वाले प्रकाश ने पहली मारपीट स्कूल में तब की जब वो आठवीं कक्षा में था. ख़ुद से दो क्लास सीनियर एक छात्र को जब प्रकाश ने पीटा तो उसका नाम पूरे स्कूल में चर्चित हो गया. यहीं से उसने दादागिरी का पहला स्वाद चखा.

इसके बाद तो उसने अपनी गैंग बनाना शुरू कर दिया जो छोटे-मोटे अपराधों को अंजाम देती. प्रकाश ने पहले-पहल अपराध की दुनिया में प्रवेश अपने गांव से ही किया. अवैध शराब का धंधा हो या लीसा की ब्लैक-मार्केटिंग, प्रकाश हर तरह के धंधों में अपनी आमद दर्ज कर रहा था. अपने शौक पूरे करने के लिए उसके पास पैसा आने लगा था और इसकी उसे लत लगने लगी थी.

छोटी उम्र में ही उसने पूरे अल्मोड़ा जिले में अवैध धंधों पर राज कर लिया था. लेकिन अति महत्वकांक्षी प्रकाश पांडे इन छोटे मोटे धंधों से संतुष्ट होने वाला नहीं था. लिहाज़ा उसने मायानगरी कहे जाने वाले मुंबई शहर का रुख़ किया. यह नब्बे के दशक का वो दौर था, जब देश के अलग-अलग राज्यों से उत्साही और जुनूनी युवा अपने सपनों को साकार करने मुंबई पहुंचा करते थे. लेकिन मुंबई शहर ख़ुद धार्मिक नफरत की आग में झुलस रहा था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुंबई उन सिलसिलेवार बम धमाकों से दहल गई थी जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई.

इन बम धमाकों में मुंबई के सबसे बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम का नाम सामने आया. कहा जाता है कि यहीं से दाऊद और कभी उसका राइट हैंड रहे छोटा राजन के आपसी रिश्ते खराब होते चले गए. फिर एक समय ऐसा भी आया जब दोनों ने एक दूसरे का साथ छोड़ दिया और आगे चलकर तो दोनों एक दूसरे के खून प्यासे हो गए.

मुंबई अंडरवर्ल्ड में जब सत्ता का यह टकराव चल रहा था उसी दौरान अल्मोड़ा के एक छोटे से गांव खनौइया का प्रकाश पांडे भी एक सुबह बॉम्बे सेंटल रेलवे स्टेशन पहुंचा. यहां पहुंचने के बाद उसकी सबसे पहले दोस्ती गैंगस्टर विक्की मल्होत्रा और पुनीत तानाशाह से हुई. इन्हीं दोनों ने फिर उसे छोटा राजन से मिलवाया.

अपने गैंग में शामिल करने से पहले छोटा राजन ने प्रकाश को एक कॉंट्रैक्ट किलिंग का ठेका यह देखने के लिए दिया कि पहाड़ से आया ये शख्स आखिर कितने पानी में है. कहा जाता है कि जिसकी हत्या की जानी थी, वो कोई आम इंसान नहीं, बल्कि एक हाई प्रोफाइल नेता था. लेकिन प्रकाश पांडे ने उसके सुरक्षा घेरे को भेदकर उसके माथे के बीचों-बीच 9 एमएम की पिस्टल से गोली दागकर उसकी दिनदहाड़े हत्या कर दी. इस हत्याकांड की गूंज से न केवल महाराष्ट्र सरकार हिल गई, बल्कि ख़ुद छोटा राजन भी चौंक गया. उसे ऐसे ही दुस्साहसी लोगों की जरूरत थी लिहाज़ा उसने प्रकाश को अपने नज़दीकी लोगों में शामिल कर लिया. प्रकाश पांडे उर्फ़ पीपी का क्राइम रिकॉर्ड अब मुंबई में नए सिरे से खुला. लेकिन यहां वो अपने असली नाम प्रकाश पांडे नहीं, बल्कि बंटी पांडे के रूप में दर्ज हुआ.

जैसा कि हमने पहले भी जिक्र किया, मुंबई बम ब्लास्ट में सैकड़ों बेकसूरों की मौत के बाद दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन के आपसी संबंध बिगड़ चुके थे और दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे थे. लेकिन इस अलगाव में छोटा राजन ज्यादा मजबूत होकर उभरा क्योंकि उसके साथ विक्की मल्होत्रा और पुनीत तानाशाह के साथ ही अब बंटी पांडे जैसा कुख्यात भी था. इन चारों ने मिलकर फिर से एक नई गैंग बनाई. दूसरी तरफ़ दाऊद इब्राहिम का साथ दे रहा था छोटा शकील. बल्कि शकील ही उसके धंधे संभाल रहा था क्योंकि मुंबई क्राइम ब्रांच के साथ ही अब राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी भी दाउद और उसके गुर्गों के पीछे थी जिसके चलते दाऊद पाकिस्तान के कराची में रहने लगा था.

दाऊद पाकिस्तान चला तो गया था लेकिन मुंबई पर उसकी पकड़ कम नहीं हुई थी और यह बात छोटा राजन के गैंग को लगातार खटक रही थी. लिहाज़ा इससे पार पाने के लिए उन्होंने दाऊद की हत्या का प्लान बनाया. अपने एक गुप्त ठिकाने एक रोज़ छोटा राजन ने बंटी पांडे और कुछ बेहद ख़ास लोगों को बुलवाया और उनसे कहा कि अब वक्त आ गया है जब दाऊद को अंत कर दिया जाए. लेकिन यह काम बहुत कठिन और जोखिम भरा था. क्योंकि इस हत्या को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान जाना था जहां दाऊद को सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का भी परोक्ष समर्थन हासिल था. ऊपर से उसकी बेहद मजबूत निजी सुरक्षा को भेदना भी एक बड़ी चुनौती थी. ऐसे में उस पर हमला करने वाला अगर कामयाब हो भी जाता तो उसका जिंदा बचकर लौटना नामुमकिन ही था.

दाऊद को मारने के लिए इन तमाम चुनौतियों से कैसे पार पाई जाए, यह सोचकर छोटा राजन परेशान हो रहा था कि तभी बंटी पांडे ने कहा, ‘हम हमला जरूर करेंगे और इस हमले को मैं लीड करूंगा.’ उसके साथियों ने पहले तो उसे कहा कि वो पागल हो गया है और सिर्फ़ जोश में कराची जाकर दाऊद को मारने की बात कह रहा है. लेकिन बंटी पांडे का आत्मविश्वास देखते हुए विक्की मल्होत्रा और पुनीत तानाशाह भी उसके साथ हो गए.

यह घटना है जून 1998 की. इन तीनों दुर्दांत अपने कुछ खास गुर्गों के साथ पाकिस्तान में दाखिल हुए जहां इन्हें आधुनिक हथियार मुहैया करा दिए गए. इसके बाद ये सीधे कराची की क्लिफटन रोड पर रैकी करने पहुंचे जहां दाऊद एक अभेद सुरक्षा वाले बंगले में रह रहा था. इनके मुखबिर ने इन्हें यह भी सूचना दी कि दाऊद के घर से कुछ ही दूरी पर एक मस्जिद है जहां वो हर रोज नमाज़ पढ़ने आया करता है. यह इनपुट मिलने के बाद इन लोगों ने अपना भेष किसी सऊदी नागरिक की तरह बनाया और मस्जिद के अलग-अलग कोनों में घात लगाकर छिप गए. लेकिन दाऊद की इंटेलिजेन्स इतनी मजबूत हटी कि उसे पहले ही इस हमले की भनक लग गई और वह उस दिन अपने घर से बाहर ही नहीं निकला.

इस हमले में नाकाम होने के बाद बंटी पांडे ने दो साल बाद फिर से दाऊद पर हमला करने की साजिश रची. साल 2000 में दाऊद की बेटी मारिया का देहांत हुआ. ये खबर बंटी पांडे और उसके साथियों को मुंबई में मिली तो वे तुरंत पाकिस्तान पहुंचे. प्लान था कि दाऊद जब दरगाह पर आएगा तो वहीं उसे निशाना बना लिया जाएगा लेकिन इस बार भी दाऊद पर हमला करने में ये लोग नाकाम रहे.

इस नाकाम साजिश का पता चलने के बाद दाऊद ने भी पलटवार किया. उसके खास आदमी छोटा शकील ने बैंकॉक में रह रहे छोटा राजन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलवा दी. इस हमले में छोटा राजन तो बच गया लेकिन उसका नज़दीकी रोहित वर्मा मारा गया. इन दोनों गैंग के बीच अब अंतर्राष्ट्रीय गैंगवॉर छिड़ गई थी. नेपाल, मलेशिया, बैकॉंक, पाकिस्तान और कीनिया में इन बीच कई मुठभेड़ हुई जिनमें दर्जनों शार्प-शूटर, माफ़ियाओं और सफेदपोशों की हत्याएँ हुई.

इधर मुंबई पर अब लगभग पूरी तरह से बंटी पांडे का राज हो गया था. लेकिन दाऊद अब भी उसकी आंख की किरकिरी बना हुआ था और वह उसे खत्म करने का कोई भी मौक़ा नहीं चूकना चाहता था. ऐसा ही मौक़ा उसे मिला 23 जुलाई 2003 को. जब दाऊद की बेटी का निकाह पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी जावेद मियांदाद के बेटे से दुबई में होना था.

इस बार भी हमले की पूरी पटकथा लिख दी गई थी, लेकिन तभी बंटी पांडे दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया. इस गिरफ़्तारी के बाद भी बंटी पांडे और उसके गैंग ने मुंबई में उन सभी की हत्याएँ जारी रखी जो किसी भी तरह से दाऊद से जुड़ा हुआ था. इनमें सबसे प्रमुख नाम था ईस्ट एंड वेस्ट एयरलाइंस के एमडी थक्युक वाहिद का. वाहिद 1993 के बम धमाकों का आरोपी था और उस पर दाऊद को सीधे मदद करने के भी आरोप थे.

बंटी पांडे जमानत पर जेल से बाहर आया तो करीब एक दर्जन हत्याकांडों को अंजाम देने के बाद उसने छोटा राजन का साथ छोड़ दिया और अपनी ख़ुद की गैंग बना ली. इस वक्त तक वो काफी चर्चित हो चुका था लेकिन उसे राष्ट्रीय मीडिया में सबसे ज़्यादा चर्चा तब मिली जब उसने 2007 में शाहरुख़ खान की फिल्म ओम शांति ओम की बंपर कमाई के बाद रंगदारी के लिए फोन किया.

एक सुपर स्टार से रंगदारी मांगने के बाद वो राष्ट्रीय मीडिया में तो चर्चित हुआ, लेकिन छोटा राजन गैंग से अलग होने के चलते उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया जितना पहले लिया जाता था. लिहाजा अब उसे कुछ ऐसा करना था कि उसके नाम को सफेदपोश हल्के में न ले. इसके लिए उसने महाराष्ट्र में शिव सागर रेस्टोरेंट की बड़ी चेन चलाने वाले एक व्यापारी से जब रंगदारी मांगी तो सिर्फ़ दहशत पैदा करने के लिए उसके आफिस के बाहर खड़े सुरक्षा गार्ड को गोलियों से भून दिया. इस हत्याकांड के बाद तो बंटी पांडे की तूती बोलने लगी.

अपराध की दुनिया में उसका नाम तब और भी कुख्यात हो गया जब दिल्ली क्राइम ब्रांच के एसीपी राजबीर सिंह की उसने दिन दहाड़े हत्या की. इस हत्याकांड के बाद तो पूरे मुंबई और दिल्ली में पीपी का वर्चस्व हो गया. अब रंगदारी वसूलना और हत्याएँ करना उसके लिए आम बात हो चली थी. लेकिन एक पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद अब बंटी पांडे पूरे देश की पुलिस के राडार में आ चुका था. वह खुद भी यह भांप चुका था कि पुलिस उसे कभी भी निपटा सकती है. इसलिए एक रात वो मुंबई की अंडरवर्ल्ड दुनिया को छोड़ गायब हो गया.

कई साल पुलिस उसे जगह-जगह तलाशती रही. लेकिन, पुलिस को उसका सुराग तो दूर, चार सालों तक कोई क़िस्सा भी सुनाई नहीं दिया. ऐसा इसलिये, क्योंकि बंटी पांडे देश छोड़ चुका था. वो कुछ महीनों तक तो वियतनाम की राजधानी हनोई में रहा और फिर जब उसे लगा कि वहां उसकी शिनाख्त हो सकती है तो उसने हनोई से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर एक गांव में अपना नया ठिकाना बनाया. उसने अपने पूरे रूपरंग के साथ ही अपने बोलने की शैली तक बदल डाली थी.

वियतनाम के इस गांव में बंटी पांडे ने दालों और मसालों का काम शुरू किया. धीरे-धीरे पूरे गांव में उसकी इज्जत होने लगी. लेकिन ये काम महज दिखाने भर का था. उसका असली काम अब भी मुंबई की अंधेरी दुनिया में ही चल रहा था जिसे वह वियतनाम से ही ऑपरेट करता था. उसकी आराम की यह दुनिया तब उजड़ गई जब वह मुंबई में अपने एक गुर्गे से सैटेलाइट फोन पर बात कर रहा था और क्राइम ब्रांच ने इस फोन कॉल को ट्रेस कर लिया. फोन ट्रेस होते ही पुलिस ने इंटरपोल से संपर्क किया और कुछ ही समय बाद बंटी पांडे को तीन नवंबर 2010 के दिन वियतनाम के उसी गांव से दबोच लिया गया.

प्रकाश पांडे उर्फ़ बंटी पांडे उर्फ़ पीपी पर मुंबई पुलिस ने मकोका यानी ‘महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट’ के तहत मुक़दमा दर्ज किया. यह ऐक्ट महाराष्ट्र सरकार द्वारा 1999 में संगठित अपराधों और अंडरवर्ल्ड से जुड़े अपराधों पर लगाम कसने के लिए बनाया गया था.

2007 में एक पेशी के दौरान पीपी फरार भी हुआ लेकिन कुछ समय बाद ही उसे पुलिस ने पकड़ लिया. इस घटना के बाद से जेल में उसकी सुरक्षा काफी बढ़ा दी गई थी. वह तब भी सुर्ख़ियों में आया जब साल 2015 में एक पेशी के दौरान उसे पुलिस वैन में आइपॉड पर गाने सुनते देखा गया. इसके साथ ही उसे रास्ते में गाड़ी रोक कर एटीएम से पैसा निकालने तक की छूट दी गई थी. जबकि अन्य मामलों में किसी अपराधी को इस तरह की कोई छूट नहीं दी जाती है. पुलिस अधिकारियों से जब इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि कोर्ट ने ही पीपी को एक आइपॉड, एक हेडफोन और दो एटीएम रखने की अनुमति दी है.

प्रकाश पांडेय जब देहरादून की सुद्धोवाला जेल में कैद था तो उसी बैरक में उसके साथ यूपी-उत्तराखण्ड के कुख्यात गैंगस्टर अमित मलिक उर्फ भूरा को भी रखा गया था. सजा काट रहे किसी अन्य कैदी से पुलिस को ये सूचना मिली कि भूरा जेल में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करता है और साथ ही अंडरवर्ल्ड डॉन पीपी से ट्रेनिंग भी ले रहा है. पुलिस को यह भी इनपुट मिला कि इसके बाद वह सीधे विदेश भागने वाला था. इसके कुछ ही दिन बाद भूरा जेल से फरार भी हो गया था.

बंटी पांडे के सफर का अंत वही हुआ जो अपराध की दुनिया में बढ़े किसी भी कुख्यात का होना चाहिए – जेल. पीपी उर्फ़ प्रकाश पांडे आज सितारगंज जेल में है और अपने अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

 

स्क्रिप्ट : मनमीत

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