18 फरवरी 2019 की सुबह थी. एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली नीतिका कॉल देहरादून रेलवे स्टेशन से जन शताब्दी में सवार होकर दिल्ली रवाना हुई. अभी दस महीने पहले ही नीतिका की शादी हुई थी और दो महीने बाद उनकी पहली सालगिरह आने वाली थी. नीतिका इस दिन को यादगार बना देना चाहती थी और ट्रेन में सफर करते हुए यही सोच रही थी कि इस मौके पर उन्हें क्या करना चाहिए.
ट्रेन अभी मुजफ्फरनगर पहुंची ही थी कि तभी नीतिका के मोबाइल फोन पर एक कॉल आता है. एक ऐसा कॉल, जिसने न सिर्फ़ नीतिका के तमाम सपनों पर पानी फेर दिया बल्कि एक ही झटके में उनकी पूरी दुनिया उजाड़ के रख दी. अपने जिस हमसफ़र के साथ वो पहली सालगिरह का जश्न मनाने के सपने बुन रही थीं, वो हमसफ़र हमेशा के लिए उन्हें छोड़ गया था.
ट्रेन में अकेले सफ़र कर रही नीतिका ने किसी तरह ख़ुद को सम्भाला और दिल्ली पहुँचते ही अपने परिजनों को साथ लेकर वो वापस देहरादून आई. यहां अपने ससुराल पहुंची और अपनी बूढ़ी सास को सामने देखा, तो उनके गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी. जवान बहू को इस कदर बिलखता देख सास को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके जीवन का सबसे बड़ा डर, हक़ीक़त बन चुका है. वही डर, जो किसी भी फ़ौजी की माँ के दिल में हमेशा कहीं न कहीं दबे-छिपे बैठा रहता है.
उस माँ का लाड़ला बेटा और नीतिका का हमसफ़र देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे चुका था. कश्मीर में आतंकवादियों के ख़िलाफ़ चल रहे एक अभियान में मेजर विभूति शंकर ढौंढियाल वीरगति को प्राप्त हुए थे.
अगले दिन जब मेजर विभूति का पार्थिव शरीर उनके घर पर लाया गया तो नीतिका ने जिस संदेश के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी, उसे देख पूरे देश की आंखें छलछला गई. जय हिंद के उद्घोष के साथ ही उन्होंने अपने जीवन साथी को अंतिम संदेश देते हुए कहा ‘आई लव यू विभु. आपने मुझसे झूठ कहा था कि आप मुझसे प्यार करते हो. आप मुझसे नहीं बल्कि अपने देश से ज्यादा प्यार करते थे और मुझे इस बात पर हमेशा गर्व रहेगा.’
कंट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट्स में काम करने वाले ओमप्रकाश ढौंडियाल के घर 18 दिसम्बर 1987 के दिन एक लड़के का जन्म हुआ. तीन बहनों के इस इकलौते भाई का नाम विभूति रखा गया. विभूति ने अपने बचपन में ही भारतीय सेना में जाने का सपना बुन लिया था. देहरादून के सेंट जोसेफ एकेडमी और पाइन हॉल स्कूल से जब वो अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रहे थे, तब इस सपने ने और भी मजबूत आकार लिया.
लेकिन विभूति के लिए भारतीय सेना में चयन का सफर आसान नहीं रहा. इसमें कई बार उन्हें असफलता भी हाथ लगी लेकिन उनका लक्ष्य एकदम साफ़ था. लिहाज़ा एक दिन आया जब उनकी मेहनत रंग लाई और विभूति OTA यानी ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकैडमी पहुंच गए. साल 2011 में उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई और वो भारतीय सेना में अफ़सर बन गए. उनके बचपन का सपना पूरा होने के साथ ही उनके जीवन में मोहब्बत ने भी दस्तक दी. नीतिका कौल नाम की एक लड़की से उनकी दोस्ती हुई जो जल्द ही प्यार में बदल गई और 19 अप्रैल 2018 के दिन दोनों ने शादी कर ली.
शादी के कुछ समय बाद विभूति और नीतिका देहरादून आए और अपने गृहस्थ जीवन का पहला नया साल उन्होंने यहीं मनाया. जनवरी में विभूति को वापस अपनी ड्यूटी पर लौटना था. वो इस वक्त तक 55 राष्ट्रीय राइफ़ल की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर हो चुके थे. लिहाज़ा उनकी जिम्मेदारियाँ भी पहले से बढ़ गई थी. लेकिन ड्यूटी पर लौटते हुए उन्होंने नीतिका से वादा किया कि वे अपनी पहली सालगिरह पर छुट्टी लेकर जरूर आएँगे और धूमधाम से इसका जश्न मनाएँगे. कौन जानता था कि उनका यह वादा अधूरा ही रह जाएगा.
विभूति की पोस्टिंग उस दौरान कश्मीर में थी जब 14 फरवरी 2019 का वो मनहूस दिन आया. वो दिन जिसे सारी दुनिया में मोहब्बत के नाम लिख दिया गया है, ठीक उसी दिन कश्मीर में नफ़रत का भयावह विस्फोट हुआ. पुलवामा जिले के अवंतिपोरा में जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने ऐसा बम धमाका किया जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए.
देश भर में इस हमले के चलते आक्रोश था और इस नृशंस वारदात को अंजाम देने वालों को सबक़ सिखाना ज़रूरी था. इस कार्रवाई की जिम्मेदारी 55 राष्ट्रीय राइफल्स के कंधों पर थी. उन्हें अपने सूत्रों से इस हमले को लेकर जल्द ही कुछ इनपुट भी मिल गए. 55 राष्ट्रीय राइफ़ल की डेल्टा कंपनी की कमान इस वक्त मेजर विभूति के पास थी जो पुलवामा में कई सफल अभियानों का नेतृत्व कर चुके थे.
एक युवा लेफ़्टिनेंट के तौर पर विभूति पहले भी जम्मू-कश्मीर में लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पास तैनात रह चुके थे. पूँछ सेक्टर में रहते हुए उन्होंने काउंटर-टेररिस्ट ऑपरेशंज़ को भी बेहद क़रीब से देखा था. साल 2013 से 2017 तक उन्होंने कई स्पेशल ट्रेनिंग की थी और उनमें कमाल का युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता थी. शायद यही कारण था कि पुलवामा हमले के बाद पहली कार्रवाई करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई.
17 फरवरी 2019 यानी पुलवामा हमले के तीन दिन बाद सुरक्षा बलों को अपने खुफिया सूत्रों से विश्वसनीय इनपुट मिला कि सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के लिए जिम्मेदार कुछ आतंकवादी, पुलवामा के पिंगलान गांव में छिपे हुए हैं. इस सूचना के आधार पर 55 आरआर और जम्मू-कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने तलाशी अभियान शुरू किया.
ब्रिगेडियर हरबीर सिंह की देखरेख में टीम का नेतृत्व मेजर विभूति कर रहे थे. उनकी टीम जैसे ही इन आतंकवादियों के ठिकाने के नज़दीक पहुंची, आड़ लिए बैठे आतंकियों ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू कर दी. दोनों तरफ़ से हो रही गोलीबारी का यह सिलसिला करीब बीस घंटों तक चला. इस दौरान मेजर विभूति को भी गोली लगी लेकिन इसके बावजूद भी वे रेंगते हुए आतंकियों के ठिकाने के करीब पहुंच गए.
उन्होंने देखा कि एक आतंकवादी क्रॉस फायरिंग की आड़ लेकर भागने की कोशिश कर रहा है तो मेजर विभूति ने अपनी जान की परवाह किए बिना उसे आगे बढ़कर निशाना बनाया और मौके पर ही मार गिराया. इस आतंकवादी की पहचान बाद में जैश-ए-मोहम्मद के इनामी आतंकी के रूप में हुई. मेजर विभूति के नेतृत्व में सेना की इस कॉम्बैक्ट टीम ने जल्द ही सभी आतंकवादियों का सफाया कर दिया. लेकिन ऑपरेशन के दौरान मेजर विभूति मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देते हुए शहीद हो गए. उनके साथ ही इस ऑपरेशन में 4 अन्य जवान भी शहीद हुए. मेजर विभूति को अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.
19 फरवरी के दिन जब शहीद विभूति का पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचा तो उनकी पत्नी नीतिका का उन्हें अंतिम विदाई देना भी सारे देश के लिए प्रेम और समर्पण का अलहदा उदाहरण बना. अंतिम संस्कार के वक्त नीतिका ने मेजर विभूति के पार्थिव शरीर को सलाम किया, उनका माथा चूमा और फिर अपने विभू को आई लव यू कहते हुए आगे कहा, ‘सबको पता है कि मैं आपको बहुत प्यार करती हूं. मुझे हमेशा आपकी फिक्र रहती थी. आप मुझे मेरी जान से भी ज्यादा प्यारे हो. आपने मुझसे झूठ बोला. आप मुझसे ही नहीं बल्कि पूरे देश से प्यार करते थे. सबसे प्यार करते थे. आपने देश के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी.’
‘मैं सभी से निवेदन करती हूं कि वे सहानुभूति न रखें, बल्कि बहुत मजबूत बनें. क्योंकि यह वीर यहां खड़े किसी भी व्यक्ति की तुलना में बहुत बड़ा है. जिसने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी. आप सच में हीरो हो. मेरे लिए बेहद गर्व की बात है कि मैं आपकी पत्नी हूं. मेरा पति वीर है. मेरा ही नहीं बल्कि पूरे देश का हीरो है. आज जा रहे हो लेकिन याद रखना आप मुझसे कभी दूर नहीं हो सकते. हमेशा मेरे साथ रहोगे. आई लव यू विभू. जय हिंद.’
29 साल की नीतिका न सिर्फ़ इस संदेश के चलते एक मिसाल बनीं बल्कि इसके बाद का उनका सफर और भी प्रेरणादायी रहा. शादी के एक साल के भीतर ही पति की मौत हो जाने से वो टूटी नहीं बल्कि उन्होंने फैसला किया कि वे भी मेजर विभूति की ही तरह भारतीय सेना का हिस्सा बनेंगी. उन्होंने मल्टी-नैशनल कम्पनी की नौकरी से इस्तीफ़ा दिया और सैन्य अधिकारी की परीक्षा की तैयारी की. एक साल बाद ही जून 2020 में नीतिका ने यह परीक्षा पास भी कर ली.
लगभग साल भर की ट्रेनिंग के बाद 30 जून 2021 को नीतिका चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी से बतौर लेफ्टिनेंट पास आउट हुई और सेना के टेक्निकल विंग का हिस्सा बन गई. उनके अफ़सर बनने वाले दिन उत्तरी कमान के प्रमुख ले. जनरल वाईके जोशी ने ख़ुद नीतिका की यूनिफॉर्म पर स्टार लगाए. अमूमन यह काम पासआउट होने वाले कैडेट के माता-पिता या अभिभावक करते हैं लेकिन नीतिका के मामले में सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें यह सम्मान दिया.
अपने इस सफ़र के बारे में तब नीतिका ने कहा था, ‘ट्रेनिंग एकेडमी में अपनी यात्रा से मुझे काफी सुकून मिला. जिस दिन मैंने यहां कदम रखा, मैंने महसूस किया कि मेरे पति ने भी कभी यही सफर तय किया था. मैं भी वही कर रही हूं, जय हिंद.’
स्क्रिप्ट : मनमीत
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