अनुपमा गुलाटी हत्याकांड शायद आपको याद हो. वही हत्याकांड जिसने 2010 में पूरी दून घाटी को दहला दिया था. अनुपमा गुलाटी के पति ने ही उसकी हत्या करने के बाद उसके शरीर के 72 टुकड़े कर डाले थे और उन्हें एक डीप फ़्रीज़र में भरकर वो धीरे-धीरे इन्हें ठिकाने लगा रहा था. अनुपमा के शरीर के कई अंग उसने देहरादून और मसूरी के अलग-अलग हिस्सों में फेंके. वो उसकी लाश को पूरी तरह ठिकाने लगा चुका होता लेकिन उससे पहले ही वो एक ऐसी गलती कर बैठा कि उत्तराखंड पुलिस ने उसे दबोच लिया. जब उसकी गिरफ़्तारी हुई तब मैं एक दैनिक अख़बार में क्राइम रिपोर्टर हुआ करता था. अनुपमा हत्याकांड में कब क्या हुआ, कैसे जांच आगे बढ़ी और कैसे अनुपमा का कातिल पकड़ा गया, विस्तार से सुनिए इसकी आँखों देखी.
ये कहानी भी अनुपमा हत्याकांड जैसी ही है. बल्कि शायद उससे भी ज़्यादा ख़ौफ़नाक और बर्बरअपराध की कहानी. इस कहानी में भी अनुपमा जैसी ही एक निर्दोष और मासूम लड़की है. इस बात से बिलकुल अनजान कि उसका पति ही उसकी हत्या करने वाला है. हत्या भी ऐसी जो पहाड़ के इतिहासमें पहले कभी नहीं हुई और जिसे याद करते हुए आज भी उस इलाक़े के लोग ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं.
तो शुरू करते हैं कहानी विक्रम और सुषमा की.
टिहरी जिले के बड़ियारगढ़ में सैरवाड़ी नाम का एक छोटा-सा गांव है. विक्रम और सुषमा इसी गांव में पले-बढ़े थे. विक्रम की टिहरी में एक प्राइवेट बैंक में नौकरी लगी तो उसके घरवालों ने सुषमा से उसकी शादी पक्की कर दी. विक्रम और सुषमा एक ही स्कूल से पढ़े थे तो बचपन से ही एक-दूसरे को जानते थे.
उनकी शादी की डेट तय हुई तो विक्रम के पिता ने उससे लंबी छुटटी लेकर गांव लौटने को कहा. तय समय पर गांव में धूमधाम से विवाह का आयोजन हुआ. सभी वैवाहिक अनुष्ठान पूरे हो गए तो मेहमानभी अपने अपने घर लौट गए. शादी के कुछ दिनों बाद तक सब कुछ सामान्य ही चल रहा था. फिर एक दिन विक्रम सुषमा को अपने खेतों में लेकर गया और उसे बताया कि कल से जौ की कटाई शुरू करनीहै. सुषमा ने मुस्कुराते हुए हामी भरी और कहा कि ‘हाँ, हम दोनों मिलकर इस कटाई को पूरा करेंगे.’ सुषमा ये बिलकुल नहीं जानती थी कि विक्रम के मन में क्या चल रहा है.
अगले दिन तड़के विक्रम पहले उठा और अपनी कुल्हाड़ी को धार देने लगा. सुषमा की जब नींद खुलीऔर उसने कुल्हाड़ी को धार देते विक्रम को देखा तो हंसते हुए मज़ाक़िया अंदाज़ में उससे कहा, ‘जौ कीकटाई के लिए कुल्हाड़ी तैयार कर रहे हो?’ इस पर विक्रम भी हंस पड़ा और उसने जवाब दिया कि वोजौ की कटाई से पहले खेत पर ही लगे एक पेड़ से कुछ लकड़ी भी काट लेगा क्योंकि चूल्हा जलाने केलिए लकड़ी भी कम हैं.
थोड़ी देर बाद दोनों लोग खेत की तरफ चल पड़े. सुषमा जौ की कटाई करने लगी तो विक्रम पेड़ परचढ़कर लकड़ी काटने लगा. वो कुल्हाड़ी से लकड़ी काटता और फिर नीचे खेत में फेंक देता. लकड़ियों का जब बड़ा ढेर जमा हो गया तो सुषमा ने विक्रम को आवाज देते कहा कि ‘बहुत लकड़ी कट चुकी हैं. अब वो नीचे आ जाए और जौ की कटाई में उसका साथ दे.’ विक्रम नीचे उतरा और सुषमा के बिलकुलपास जा पहुंचा. विक्रम को अपने इतने नजदीक देख सुषमा पहले तो शर्म से सकपका गई और फिरवापस अपने काम में जुट गई.
लेकिन विक्रम की आंखें अब लाल होने लगी थी और कुल्हाड़ी पर उसकी पकड़ मजबूत हो गई थी. सुषमा कुछ समझ पाती उससे पहले ही विक्रम ने कुल्हाड़ी ऊपर उठाई और सुषमा के सिर के बीचों-बीच दे मारी. सुषमा के धड़ से उपर सिर के दो हिस्से हो गए. वो जमीन पर गिर पड़ी और उसकी वहीं मौत हो गई. वो ये भी नहीं पूछ सकी कि विक्रम ने आख़िर ऐसा क्यों किया.
इधर विक्रम हत्या करने के बाद भी बिलकुल शांत चित्त था. वो इस हत्या के बाद भागा नहीं बल्किसुषमा के शव के पास बैठा और कुल्हाड़ी से उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करने लगा. उसने अपनीपत्नी के सौ से ज्यादा टुकड़े किए और फिर पेड़ से काटी गई हर लकड़ी के उपर एक टुकड़ा रखकरसबमें बारी बारी से आग लगाने लगा. गांव के लोगों ने जब खेत से उठती आग की लपटें देखी तो कुछलोग देखने पहुंचे कि आखिर माजरा क्या है. जैसे ही लोग खेत के पास पहुंचे उनके पैरों तले जमीनखिसक गई.
सुषमा के रिश्तेदार जगदीश कैंतुरा ने बताया कि ये मंजर देखकर कई औरतें तो बेहोश हो गई थी. किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या हुआ और विक्रम ने ऐसा क्यों किया. वो जलती हुईलकड़ियों के पास ऐसे बैठा था, मानो आग ताप रहा हो और उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे सबकुछ सामान्य है. जगदीश कैंतुरा उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘सच बोलें तो हमने पहली बारकोई जिंदा राक्षस अपनी जिंदगी में देखा था.’
सुषमा की मां को जब ये सूचना मिली और उन्होंने जब अपनी इकलौती बेटी का सिर एक तरफ औरबाकी का शरीर आग में जलते हुए तो वो बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी. उन्हें इस घटना के कई दिनों बादहोश आया और फिर वो कभी सामान्य हालात में नहीं लौट पाई. उन्हें ऐसा आघात लगा कि वोमानसिक स्थिति हमेशा के लिए गड़बड़ा गई. लगभग बीस सालों तक उनका इलाज उनके ही रिश्तेदारजगदीश कैंतुरा ने देहरादून में एक नामी मनोचिकित्सक से कराया.
बहरहाल, इस घटना की सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर आई और विक्रम को अपने साथ ले गई. येघटना 1992 के उस दौर की है जब पुरानी टिहरी से कुछ सरकारी विभाग और जेल नई टिहरी शिफ़्टहोने लगे थे. नई टिहरी जेल के शुरुआती कैदियों में विक्रम भी एक था.
विक्रम का मुक़दमा जिला न्यायालय में चला. तब उसकी पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र सिंह असवालने की थी. लेकिन हैरानी की बात है कि विक्रम ने कभी अपने वकील को भी ये नहीं बताया कि आख़िरउसने अपनी पत्नी की हत्या क्यों की. अधिवक्ता राजेंद्र सिंह असवाल बताते हैं कि ‘उसने कभी इस बारेमें किसी को नहीं बताया, मुझे भी नहीं. यहां तक कि सुषमा को भी इसका बिलकुल आभास नहीं थाकि विक्रम कभी उसकी हत्या कर सकता है. लेकिन कोर्ट में जब उसके 313 के बयान हो रहे थे तोउसने बेहद अजीब बात कही. जज ने जब उससे हत्या का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया कि ‘वोमेरी पत्नी थी. इसलिए मैं उसकी हत्या करूँ या उसे पायार करूँ, ये मेरी मर्ज़ी है.’
उसके इस बयान से ये भी लगने लगा था कि उसकी मानसिक स्थिति सामान्य नहीं है. लेकिन, उसकेघर वालों और परिचितों को कभी ऐसा नहीं लगा. अगर ऐसा होता तो सुषमा को तो इसकी जानकारी जरूर होती क्योंकि वो न सिर्फ़ उसकी पत्नी थी बल्कि छोटे से ही उसके साथ पली बढ़ी थी.
सुषमा की हत्या के आरोप में विक्रम को सजा तो हुई लेकिन उसने ये हत्या क्यों की, ये हमेशा एकरहस्य ही बना रहा. इस रहस्य से अब कभी पर्दा उठ भी नहीं सकता क्योंकि विक्रम ने जेल जाने के महजछह महीने बाद ही नई टिहरी जेल में आत्महत्या कर ली थी.
बड़ियारगढ़ का ये हत्याकांड 1992 के मार्च में हुआ था. विडंबना देखिए, जब ये हत्याकांड हुआ, उसीवक्त दिल्ली में राजेश गुलाटी और अनुपमा एक रेस्टोरेंट में पहली बार मिल रहे थे. वो ही राजेश गुलाटी जिसने देहरादून में अपनी पत्नि अनुपमा की हत्या कर उसके शरीर के 70 से ज्यादा टुकड़े कर शहर मेंयहां वहां बिखरा दिए थे. उसके इस अपराध से पूरे देश को हिला कर रख दिया था और उसकी हैवानियत के किस्से दून की शांत घाटी में आज तक गूंजते हैं. सुषमा और अनुपमा की हत्या करने की वजह और परिस्थिति भले ही अलग अलग रही हो, दोनों का सामाजिक परिवेश भी भले ही अलगअलग हो, लेकिन दोनों की हत्या जिस तरीके से की गई थी, वो तरीका एक जैसा विभत्स और जघन्यथा.
ये भी संयोग ही तो था कि जिस वक्त सुषमा के पति ने उसकी की हत्या की, ठीक उसी वक्त अनुपमाऔर राजेश गुलाटी विवाह करने की प्लानिंग कर रहे थे. अनुपमा और राजेश की कहानी प्रेम से शुरूहोती है और फिर शादी, बेवफ़ाई और मुकदमेबाजी से होती हुई हत्या पर खत्म होती है.
देहरादून का एक इलाका है प्रकाश नगर. यहां रहने वाले 38 साल के राजेश गुलाटी की पत्नी अनुपमाकरीब 57 दिनों से लापता थी. 17 अक्टूबर 2010 से गायब अनुपमा का कोई सुराग नहीं लग रहाथा. राजेश एक सॉफटवेयर इंजीनियर था और उसके दो जुड़वा बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी, उम्रलगभग सात साल. राजेश अनुपमा के न मिलने से दुखी रहता था या यूं कहिये कि दुखी होने का दिखावा करता था.
अनुपमा का जब कई दिनों तक कोई पता नहीं चलता तो 11 दिसंबर को उसका भाई सिद्धांत चौधरीदिल्ली से देहरादून आता है. वो अपने बहनोई राजेश गुलाटी से कहता है कि अब बहुत दिन हो गए, इसलिए अब तो हमें पुलिस से अनुपमा की गुमशुदगी दर्ज करा ही लेनी चाहिए. राजेश हामी तो भरता है लेकिन वो अपने साले को कहता है कि वो तब तक चाय पिए और बस दस मिनट पर नहाने के बाद दोनों पुलिस के पास चलेंगे. इतना कहकर राजेश बॉथरूम में चला जाता है. सिद्धांत सोफे पर बैठकर राजेशका इंतजार करने लगता है कि तभी उसके मोबाइल पर एक टैक्स मैसेज आता है. ये मैसेज अनुपमा केमोबाइल से आता है जिसमें लिखा होता है, ‘भाइया, मैं अब घर नहीं आऊँगी. प्लीज, मुझे तलाशने कीकोशिश मत करना.’
इतने में राजेश भी नहा कर बाहर आता है और सिद्धांत उसे बताता है कि उसके फोन पर अनुपमा का मैसेज अभी अभी आया है. ये सुनते ही राजेश अपने साले से कहता है कि मैं तो पहले ही कह रहा हूं कि अनुपमा हमसे नाराज होकर गई है और अब वो लौट कर नहीं आएगी. वो अनुपमा के भाई को कहता हैकि हमें पुलिस के पास जाने की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन सिद्धांत को अब किसी अनहोनी का शकहोने लगता है. शक इसलिए भी होता है क्योंकि महीनों तक अनुपमा की कोई खबर नहीं थी, उसका मोबाइल भी बंद था लेकिन आज जब वो पुलिस के पास जाने को तैयार हुए तो अचानक ठीक उसी वक्त अनुपमा का मेसेज कैसे आ गया.
इसलिए वो पुलिस के पास जाने की बात पर ज़ोर देता है और तब दोनों देहरादून के कैंट थाने मेंपहुँचकर अनुपमा गुलाटी के गुमशुद होने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं. इस रिपोर्ट को दर्ज हुए अभी तीन चार घंटे ही हुए थे कि राजेश के घर पर पुलिस से पांच पुलिसकर्मी पहुँचते हैं. वो राजेश और सिद्धांत को बताते हैं कि उन्हें कुछ जरूरी सवाल जवाब करने है. असल में, जब राजेश और सिद्धांत थाने पहुंचेथे तो गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद सिद्धांत ने चुपके से इंस्पेक्टर से बात करते हुए अपने जीजा पर शक भी जता दिया था. इसीलिए उनके घर लौटने के कुछ देर बाद ही पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.
पुलिस को राजेश के घर आए महज दस मिनट ही हुए थे कि एक पुलिस कर्मी की नजर घर में रखे एकडीप फ्रीजर पर पड़ती है. वो राजेश से पूछता है कि उसने घर पर ये इतना बड़ा डीप फ्रीजर क्यों रखा हुआ है. राजेश थोड़ा सकपका जाता है और सामान्य होने की कोशिश करते हुए कहता है कि बस, ऐसेही खरीद लिया था. घर की तलाशी लेने के बाद पुलिस कर्मी वहां से लौट जाते हैं. लेकिन वे लोगअपनी जीप में बैठे ही होते हैं कि अचानक सभी नीचे उतरते हैं. मानो पांचों पुलिसकर्मियों के दिमाग मेंकुछ खटका हो. वे वो सभी दौड़ते हुए राजेश के घर पर दोबारा पहुंचते हैं. पुलिसकर्मियों को वापस लौटता देख राजेश चौंक जाता है. एक पुलिस वाला राजेश से पूछता है कि इस डीप फ्रीजर पर ताला क्यों लगाया हुआ है? राजेश हड़बड़ाने लगता है और बताता है कि ये डीप फ्रीजर अनुपमा लेकर आईथी और उसी ने इसे लॉक किया है. अब पुलिसकर्मियों का शक और पुख्ता होता है और वे राजेश सेसख्ती से पूछते हैं कि इस डीप फ़्रीज़र की चाबी कहाँ है. इस सख़्ती से राजेश टूट जाता है और अंदरबेडरूम से डीप फ्रीजर की चाबी लाकर एक पुलिसकर्मी को दे देता है.
पुलिसकर्मी डीप फ्रीजर का लॉक खोलते हैं और देखते हैं कि उसमें काले रंग की कई पॉलीथीन रखीहुई हैं. वैसी ही कॉली पॉलीथीन जो अक्सर घरों में कूड़े के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. पुलिस कर्मी एक पॉलीथीन बाहर निकालता है और देखता है कि उसमें मीट रखी हुई थी. कई दिनों से डीप फ्रीजर मेंरखने से मीट बिल्कुल सख्त और सफेद हो गया था. दूसरी पॉलीथीन निकाली जाती है तो उसमें भी मीटनिकलता है. यही स्थिति तीसरी-चौथी और बाक़ी पॉलीथीन की भी थी. लेकिन वो मीट कुछ अलगथा. पुलिसकर्मियों ने जब उसे बाहर निकाल कर कुछ देर खुला छोड़ा तो उस पर जमी बर्फ पिघलने लगीऔर तब उन्होंने जो मंजर देखा उससे उनकी सांस अटक गई. वो एक इंसान के हाथ की उंगलियां थी. फिर पुलिस ने एक के बाद एक 35 पॉलीथीन बाहर निकाली. उन सब में इंसान के शरीर के अलगअलग हिस्सों को छोटे छोटे टुकड़े कर रखा गया था. पुलिस को ये समझते देर नहीं लगी कि ये अनुपमा गुलाटी की लाश के टुकड़े हैं.
पुलिस के पूछने पर राजेश ने यह भी बताया कि अनुपमा के शरीर के बाकि के हिस्से वो देहरादून और मसूरी के बीच की अलग अलग खाइयों में फेंक चुका है. गिरफ़्तारी के बाद राजेश ने पुलिस को इसहत्या के पीछे की पूरी कहानी भी सुनाई. उसने बताया कि साल 1992 में उसकी और अनुपमा की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के जरिये दिल्ली के रेस्टोरेंट में हुई और वे एक-दूजे को दिल दे बैठे. राजेशउस समय दिल्ली से एमसीए की पढ़ाई कर रहा था, जबकि अनुपमा ने मैनेजमेंट कोर्स में दाखिला लिया ही था. सात साल के अफेयर में साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई की और फिर 10 फरवरी 1999 कोदोनों परिणय-सूत्र में बंध गए.
संग जीने-मरने की कसमें खाईं और शादी के अगले ही साल दोनों अमेरिका चले गए. लेकिन वहांअनबन शुरू हो गई. फिर 2003 में अनुपमा दिल्ली लौट आई. पर राजेश उसे मनाकर 2005 में फिरसे अमेरिका ले गया. एक बार फिर से दोनों का जीवन पटरी पर आने लगा था. जून 2006 में अनुपमाने जुड़वां बच्चों सिद्धार्थ और सोनाक्षी को जन्म दिया, पर उनके रिश्ते रिश्तों में खटास भी बढ़ने लगी थी. बात-बात पर एक-दूसरे से मारपीट की बात आम हो गई. दोनों 2008 में अमेरिका से लौटे तो उनकेपरिजनों ने सुलह कराने का नया रास्ता तलाशा और उन्हें देहरादून में बसने की सलाह दी.
जुलाई 2009 में वे देहरादून आ गए और प्रकाश नगर में वेद प्रकाश मित्तल के घर को किराये परलिया. बच्चों का दाखिला डीपीएस स्कूल में करा दिया, मगर दंपती के बीच कलह खत्म नहीं हुई. मामला घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिकारी के दफ्तर तक पहुंचा और राजेश को फटकार लगी. राजेशके मन में ये बात टीस की तरह चुभ गई थी.
फिर 17 अक्टूबर 2010 दशहरे की रात को जब दोनों झगड़ा हुआ तो राजेश ने अनुपमा को जोर से धक्का दिया. इससे अनुपमा नीचे गिर गई और सेंट्रल टेबल का एक कोना उसके सिर पर लगा, जिससेउसके सिर से खून बहने लगा और वो बेहोश हो गई. राजेश पर हैवानियत इस कदर हावी थी कि उसनेअपनी पत्नी का तकिए से मुंह दबा दिया जब तक कि अनुपमा की जान नहीं चली गई. अनुपमा की हत्या करने के बाद राकेश ने उसकी लाश को ठिकाने लगाने का प्लान बनाया.
वो अगले दिन बाज़ार गया और वहां से एक बड़ा डीप फ्रीज़र ख़रीद लाया. उसने लोहा काटने की आरीभी खरीदी और एक मार्बल कटर भी. इसके बाद उसने अनुपमा की लाश के टुकड़े-टुकड़े किए और उन्हें पॉली बैग में भर भरकर फ्रीज़र में डालता रहा और धीरे-धीरे उन्हें मसूरी के जगंलों में जाकर फेंकने लगा. हैरानी की बात ये भी है कि इस पूरे दौरान उसके बच्चे उसी घर में थे.
वो हर सुबह जब पूछते मम्मी कहाँ है तो राजेश उन्हें बताता कि मम्मी नाना के घर चली गई है. वो बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजता और छुट्टी होने पर उन्हें लेने भी जाता. इस दौरान जो समय उसे घर में अकेले मिलता, वो अनुपमा की लाश को ठिकाने लगाने में लगाता. क़रीब पौने दो माह तक यही सबचलता रहा. बच्चे मम्मी से मिलने की ज़िद करते तो राजेश लैपटॉप पर फर्जी ई-मेल दिखा देता. वोफोन मिलाने को कहते तो टाल जाता. बच्चों को क्या पता था कि मम्मी घर में रखे फ्रीजर में बंद हैं.
हत्या के तकरीबन सात साल बाद एक सितंबर 2017 को कोर्ट ने राजेश को उम्र कैद की सजा सुनाई. साथ ही उस पर दस लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. राजेश अभी जेल में ही है. हालांकि बीच मेंउसकी तबीयत खराब हुई तो कोर्ट ने कुछ समय के लिए उसे जमानत दी थी. राजेश के बच्चे भी अब बढ़ेहो गये हैं और दिल्ली में अपने नाना नानी के साथ रहते हैं.
सुषमा और अनुपमा की तरह ही कितनी ही विवाहिता ऐसे ही घरेलू हिंसा के चलते अपनी जान गवांबैठती है. सुषमा और अनुपमा के मामले तो इसलिये चर्चा में ज्यादा आ गये, क्योंकि उनकी हत्या हीकी इस कदर गई थी कि कोई शैतानी दिमाग भी दहल जाए. इस घटना को कवर करने वाले उस वक्तके अखबारी पत्रकारों में मैं भी शामिल था. कई बार पुलिस टीम के साथ मसूरी की तलहटियों मेंअनुपमा शरीर के टुकडे़ तलाशती फॉरेंसिक टीम को कवर करने मैं भी मौके पर गया था. यकीन मानिये, जितना विभत्स और जघन्य ये अपराध था, इसकी रिपोर्टिंग करना भी उतना ही दहशत और मानसिक तौर पर थकाने वाला था.
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