पहला धारावाहिक, जिस पर दंगे भड़काने के आरोप लगे

  • 2022
  • 6:33

आज हम उस दौर में हैं जब टीवी सीरियल, क्रिकेट मैच, न्यूज़, फिल्म्स, गाने सब कुछ अपने स्मार्टफोन्स में देखा करते हैं. लेकिन रेडियो का जमाना याद है? और टीवी का?

साल 1959 में भारत में टेलीविजन क्रांति हुई. इसके बाद तो लोगों को टीवी का ज़बरदस्त स्वाद लगा लेकिन टीवी ख़रीद पाना 90 के दशक तक भी सबके लिए संभव नहीं था. 1991 के उदारीकरण ने जब बाजार के दरवाज़े खोल दिए तब जरूर टीवी की आमद धीरे-धीरे हर घर तक होने लगी. लेकिन आपको बचपन के वो दिन भी जरूर याद होंगे जब शक्तिमान देखने पड़ोस वाले अंकल के घर जाया करते थे. कितने मजे आते थे ना? सुहाना दौर था वो भी……

अच्छा, टीवी की अगर हम बात करें. तो शक्तिमान के अलावा, और भी कई सारे प्रोग्राम्स प्रसारित होते थे और वो भी अलग-अलग जोनर के. जैसे धारावाहिक, धार्मिक कार्यक्रम, कॉमेडी प्रोग्राम्स, समाचार, म्यूजिकल प्रोग्राम्स सब कुछ. और अगर धारावाहिकों की बात करें तो इनमें शान्ति, आपबीती, रामायण, टीपू सुल्तान, तेनालीराम, चंद्रकांता जैसे कार्यक्रम बड़े फेमस थे.

लेकिन आज हम दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले उसी दौर के एक ऐसे धारावाहिक के बारे में आपको बताएंगे जो आजा़द भारत का ऐसा पहला धारावाहिक बना जिसके प्रसारण का ज़बरदस्त विरोध हुआ. कौन-सा था ये कार्यक्रम और क्या थी इसके विरोध कि कहानी, बताते हैं कि आख़िर ‘हुआ यूं था’.

ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित गल्प या उपन्यासों के साथ अमूमन ये सवाल जुड़ा रहता है कि उन्हें कितना सच माना जाए और कितना मिथक. खासतौर पर जब कोई रचना हाल ही की किसी त्रासदी से जुड़ी हो और मामला धार्मिक गुटों से संबंधित हो. ऐसे में इस पर सवाल खड़े होने और विवादों की गुंजाइश और अधिक बढ़ जाती है. ऐसा ही विवाद हुआ जब दूरदर्शन पर तमस का प्रसारण शुरू हुआ.

वैसे ये भी दिलचस्प है कि साल 1974 में जब भीष्म साहनी का उपन्यास ‘तमस’ आया था तो उस पर कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ था. बल्कि ये उनके जीवन के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक था. भीष्म साहनी, प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के भाई थे.

कुल 5 दिनों की कहानी को लेकर बुने गए उनके इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भारत-पाकिस्तान विभाजन थी. इसमें दंगों के पीछे हिंदू-मुस्लिम कट्टरपंथियों की भूमिका का बेहद वास्तविक चित्रण किया गया था. ये उपन्यास न सिर्फ जल्दी ही हिंदी की सबसे अच्छी कृतियों में शामिल हो गया, बल्कि खासा लोकप्रिय भी हुआ. फिर साल 1987-88 में गोविंद निहलानी ने इसी उपन्यास और साहनी की दो और कहानियों पर आधारित ‘तमस’ नाम से एक मिनी टीवी सिरीज़ बनाई.

इसकी शुरुआत के बारे में गोविन्द निहलानी ने एक इंटर्व्यू में बताया था, ‘फ़िल्म “ग़ांधी” की शूटिंग दिल्ली में हो रही थी. एक शाम जब श्रीराम सेंटर गया तो कोने में एक किताबों की दुकान में ‘तमस’ रखी थी. यह किताब विभाजन के समय पर आधारित है. उस दौरान मैं ऐसी ही कोई कहानी ढूंढ रहा था. मैंने ये किताब ख़रीद ली. एक पैरा पढ़ा तो मैं पढ़ता ही चला गया. लगा कि इस पर एक फ़िल्म बननी चाहिए. फिर मैंने इस किताब के लेखक को ढूंढ़ना शुरू किया. पता लगा कि भीष्म साहनी साहब दिल्ली में ही रहते हैं और बलराज साहनी के छोटे भाई हैं. उनका पता ढूंढ़ कर मैं उनसे मिलने चला गया. उन्होंने मेरी पहली फ़िल्म देखी थी ‘आक्रोश’. मैंने कहा कि अगर आपको कोई एतराज़ न हो तो ‘तमस’ पर फ़िल्म बनाना चाहता हूँ और उन्होंने हामी भर दी.’

गोविन्द निहलानी को लेखक की अनुमति तो मिल गई थी लेकिन उनके पास फिल्म बनाने लायक बजट नहीं था. उन्होंने अपने प्रॉड्यूसर ललित बिजलानी से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इस विषय पर एक फिल्म की बजाय एक टीवी सीरीज़ बना सकते हो. इस तरह एक मिनी टीवी सिरीज़ तैयार हुई जिसका पहला भाग 3 जनवरी 1988 को दूरदर्शन पर रिलीज़ किया गया.

तमस के इस प्रसारण के साथ ही राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया. ये वही दौर था जब राजनीति में कट्टरवादी ताक़तें मजबूत हो रही थी. तमस के प्रसारण पर भाजपा का कहना था कि दूरदर्शन को तुरंत ही इसे बंद करना चाहिए क्योंकि इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आर्य समाज को धार्मिक उन्मादी बताकर इतिहास को विकृत करने की कोशिश की गई है. वहीं कुछ मुस्लिम समूहों का आरोप था कि ‘तमस’ में उनके समुदाय की बर्बर छवि दिखाई गई है.

वामपंथियों और उदारवादियों के साथ विद्यार्थियों का एक बड़ा तबका ऐसा भी था जो पूरी तरह ‘तमस’ के प्रसारण के पक्ष में था. राजनीतिक गलियारों में ये विवाद बढ़ता जा रहा था तो ये न्यायालय तक भी पहुँचा. बॉम्बे हाई कोर्ट में तमस का प्रसारण बंद करवाने के लिए एक याचिका दायर की गई. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ‘तमस’ का प्रसारण आम लोगों के मानस में पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है और इससे दंगे जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं.

राजनीतिक विवाद और धार्मिक गुटों की संवेदनशीलता को देखते हुए यह प्रकरण मीडिया में भी खूब चर्चित हुआ. लेकिन जब इस मामले पर अदालत का फैसला आया तो यह एक ऐतिहासिक फैसला साबित हुआ. बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस लैंटिन और सुजाता मनोहर की पीठ ने तमस के प्रसारण पर रोक संबंधी याचिका खारिज करते हुए फैसला दिया कि ये एक त्रासदी का विश्लेषण है. इसमें दिखाया गया है कि कैसे कट्टरपंथी लोग दंगों को भड़काते हैं. फैसले में दोनों जजों ने आगे ये भी जोड़ा कि इसका प्रसारण आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक होगा.

इस विवाद से जुड़ी एक दिलचस्प बात ये भी है कि दूरदर्शन ने बाद में तमाम तरह के दबावों और विरोधों के बावजूद ‘तमस’ के पूरे आठ भागों का प्रसारण किया. ओमपुरी और दीपा साही के जीवंत अभिनय और गोविंद निहलानी के सधे हुए निर्देशन वाला ये धारावाहिक उस समय काफी लोकप्रिय हुआ. इसे दूरदर्शन के सबसे यादगार धारावाहिकों में गिना जाता है. साल 2013 में हिस्ट्री चैनल ने तमस का पुनः प्रसारण भी किया.

तमस उपन्यास के लिखे जाने के बारे में भीष्म साहनी ने एक इंटर्व्यू में बताया था, ‘विभाजन के दंगों को मैं कभी नहीं भुला सका. एक बार मैं अपने भाई बलराज साहनी के साथ भिवंडी के दंगा-ग्रस्त शहर का दौरा कर रहा था. वहां उजड़े मकान और तबाही का मंज़र देखकर मुझे रावलपिंडी का 1947 का दृश्य आंखों में आ रहा था. वहां से वापस दिल्ली आकर मेरे मन में इस विषय पर लिखने की प्रेरणा जगी.’

‘तमस’ के कई संस्करण प्रकाशित हुए और इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया. इस पर टीवी सिरीज़ बनने के बाद जब विवाद हुआ उस पर भीष्म साहनी का कहना था, ‘इसका विरोध किया जाना सही नहीं. ये मानवीय त्रासदी की कथा है, इसका कथानक निर्दोष है. हमेशा खुदगर्ज लोग ही दंगो की साज़िश रचते हैं. आम आदमी कभी दंगों की चाह नहीं रखता. लेकिन दंगा छिड़ जाने पर इसे थामना कठिन हो जाता है.’

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