25 अगस्त 1973 का दिन. उत्तरकाशी में तिलोथ सेरे के पास हिन्दुस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी के कुछ बुलडोजर गरजते हुए आगे बढ़ रहे थे. ये बुलडोजर मनेरी भाली विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य करते हुए धान की लहलहाती फसलों से पटे खेतों को साफ करने जा रहे थे. पकी हुई फसल को ज़बरदस्ती रौंदा जाने वाला था और काश्तकार इसका विरोध न कर सकें इसलिए पुलिस बल, कई कंपनी पीएसी और पूरा प्रशासनिक अमला वहां तैनात कर दिया गया था.
अहम बात ये थी कि जिन किसानों की यहां जमीनें थीं, उन्हें बिना मुआवजा दिए ही उनके खेत छीने जा रहे थे. स्थानीय किसान और महिलाएं बुलडोजर के आगे बेबस खड़े गिड़गिड़ा रहे थे. उनका विरोध कुचल दिया जाए, इसके लिए पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी गई थी. परगना मजिस्ट्रेट गंगाराम सड़क पर बाक़ायदा इसकी घोषणा कर रहे थे. पुलिस और पीएसी के हजारों जवानों ने काश्तकारों और स्थानीय लोगों को घेर लिया था. लोगों की हताशा बढ़ती जा रही थी कि तभी एक व्यक्ति करीब 150 आंदोलनकारियों के साथ नारेबाजी करता हुआ मौके पर पहुंचा. इसके साथ ही लोगों की हताशा जैसे उम्मीद में बदल गई और प्रशासन के खिलाफ ज़बरदस्त प्रदर्शन होने लगा. ये सब देखते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया और निहत्थे लोगों के साथ ही महिलाओं पर जमकर लाठी भांजी. करीब आधा घंटे आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच खींच-तान जारी रही. आंदोलनकारियों के साथ-साथ कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन जिला अधिकारी ने गोली चलाने के आदेश तक दे दिए थे. मगर पुलिस अधीक्षक गिरिराज शाह ने जोश में होश न खोकर जिलाधिकारी के आदेश के बावजूद, गोलियां नहीं चलाईं. कुछ देर बाद एडीएम मारतोलिया पुलिस के साथ समझौता करने का प्रस्ताव लाए. लम्बी बातचीत हुई के बाद ये संघर्ष खत्म हुआ.
जिस व्यक्ति के नेतृत्व में स्थानीय काश्तकार प्रदर्शन कर रहे थे, उसकी पीठ अभी-अभी हुए संघर्ष की गवाही दे रही थी. पुलिस की बर्बर लाठियों से उधड़ चुकी उसकी पीठ पर डंडों के 16 निशान उभर आए थे. उसके सर से बहता खून बता रहा था कि अपना हक़ माँगने के लिए भी एक आम आदमी को क्या क़ीमत चुकानी होती है. 37 अन्य लोगों के साथ पुलिस ने इस व्यक्ति को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया था लेकिन उनका संघर्ष व्यर्थ नहीं हुआ था. स्थानीय लोगों की जो जमीन पहले सिर्फ़ 300 रुपए प्रति नाली की दर से हड़पी जा रही थी, इस संघर्ष के बाद प्रशासन को उसका मुआवज़ा बढ़ाकर 1500 रुपए प्रति नाली करना पड़ा.
प्रथम तिलोथ कांड नाम से चर्चित इस घटना का नेतृत्व वही व्यक्ति कर रहा था जो आगे चलकर लगातार 14 साल उत्तरकाशी में नगर पालिका अध्यक्ष रहा. उत्तराखंड में कम्युनिस्ट राजनीति के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में शामिल इस व्यक्ति का नाम था, कॉमरेड कमलाराम नौटियाल.
कमला राम नौटियाल का जन्म 5 जुलाई 1930 के उस दौर में हुआ था, जब देश आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहा था. जिस गांव में कमला राम का जन्म हुआ था, वो टिहरी रियासत के अधीन था. अपने जन्म के महज दस साल के भीतर ही उन्होंने एक एक कर अपने पिता, ताऊ, दादा दादी, नाना और नानी की मौत देखी. घर से उठती शव यात्रा और मां के सूख चुके आंसुओं ने उन्हें बचपन में ही परिपक्व कर दिया था. उनके दोनों चाचा पैतृक गांव में ही रहते थे लेकिन कुछ वक्त बाद कमला राम अपने ननिहाल उत्तरकाशी में अपनी मां के साथ रहने लगे. एक दौर था जब उनका परिवार समृद्ध थोकदारों का परिवार हुआ करता था. टिहरी राजशाही के दौर में उनके परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को टिहरी नरेश की ओर से थानेदारी अधिकार प्राप्त थे. उनके परिवार के अधिकतर सदस्य पटवारी के पद पर राज सेवा करते थे. लेकिन अब उनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने लगी थी.
कठिन परिस्थितियों के बावजूद उनकी मां ने उन्हें जैसे-तैसे कीर्ति पाठशाला, उत्तरकाशी में सातवीं कक्षा तक शिक्षा दिलाई. ये स्कूल उस वक्त तक ‘वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल’ था. यहां से मिडिल परीक्षा पास करने के बाद वे देहरादून चले आए. इस वक्त उनके चाचा रामप्रसाद नौटियाल, मालदेवता में ‘मेसर्स रामप्रसाद-बृजमोहन नौटियाल’ आढ़ती के नाम से व्यापार करते थे.
साल 1947 से उन्होंने अपने चाचा के साथ रहकर डीएवी हाईस्कूल से शिक्षा प्राप्त की. 1950 में उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा विज्ञान से उत्तीर्ण की. उन्हीं के बैच के दौरान डीएवी हाईस्कूल, हायर सेकेण्डरी स्कूल बन गया. जिसके बाद उन्होंने इसी स्कूल से 12 वीं भी पास की.
घर की हालत ठीक नहीं थी लिहाजा क़रोल बाग़ दिल्ली के ‘सन्त परमानन्द ब्लाइण्ड रिलीफ मिशन’ ने देहरादून में 11 वीं और 12 वीं की पढ़ाई के लिए उन्हें आर्थिक सहायता दी. इसके पीछे भी एक कारण था. वो ये कि एक बार जब इस मिशन का नेत्र चिकित्सालय शिविर उत्तरकाशी में लगा था तो कमलाराम नौटियाल ने उस वक्त स्वेच्छा से मरीजों की सेवा की. उस समय उनके सेवा-भाव को देखते हुए हरि कृष्ण अग्रवाल ने उनकी खूब प्रशंसा की और काम पड़ने पर याद करने को कहा. उनकी स्थिति का पता चलने पर हरि कृष्ण अग्रवाल इण्टर की परीक्षा तक यानी दो साल तक 15 रूपए मासिक छात्रवृत्ति कमलाराम को भेजते रहे. उनकी स्थिति के बारे में अब उनके स्कूल को भी पता चल चुका था, लिहाजा विद्यालय प्रशासन ने भी उनकी पूरी फीस माफ कर दी थी. इस तरह साल 1952 में डीएवी हायर सेकेण्डरी स्कूल, देहरादून से कमलाराम नौटियाल ने 12वीं की परीक्षा पास की.
कमलाराम अपनी जैसी स्थिति वाले अन्य छात्रों से खूब बातें करते थे और उनकी समस्याएं सुलझाने के हर संभव प्रयास करते थे. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर गढ़वाल छात्र संघ की भी स्थापना की. इसके माध्यम से गढ़वाली छात्र-छात्राओं की समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की जाती थी. कुछ वक्त बाद कमलाराम, पर्वतीय राज्य संघ नाम के एक संगठन में शामिल हो गए. उन्हें इसका कोषाध्यक्ष चुना गया. इस दौरान उन्हें कम्युनिज्म को गहराई से जानने का मौका मिला. उन्होंने देश विदेश के चर्चित लेखक, उपन्यासकारों और क्रांतिकारी नेताओं की किताबें पढ़नी शुरू की. इन किताबों को पढ़कर उनके भीतर गहरी समझ बनने लगी कि आखिर क्या कारण है कि भौतिक संसाधनों में गरीब लोगों का हक मौजूदा वक्त की सरकारों के मार्फत नहीं मिल सकता.
कमलाराम नौटियाल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि ‘मेरी मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी. मनुष्य के कल्याण के लिए मेरी मां अदृश्य ईश्वर से लेकर नृसिंह देवता के त्रिशूल तक पर विश्वास करती थी. समाज की अन्य धार्मिक महिलाओं की तरह मेरी मां का भी विश्वास था कि अपने या अपने हमदर्द की बड़ी से बड़ी कठिनाई या संकटमय स्थिति और बीमारी देवता के नाम पर संकल्प करने से दूर हो सकती है. ऐसी परिस्थितियों में मेरा मार्क्सवाद पर विश्वास करना सरल नहीं था. क्योंकि मेरी परवरिश ऐसे ही रूढ़ीवादी परिवार में हुई थी. मगर आर्थिक और सामाजिक स्थिति के कारण धीरे-धीरे मार्क्सवादी विचारों का असर मेरे-मन मस्तिष्क पर चढ़ने लगा. 12 वीं के बाद मैं कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रशंसक हो गया. बहरहाल, मेरी मां भी अस्वस्थ रहने लगी थी. मुझे इस संभावना के साथ कॉलेज में भर्ती होने का विचार छोड़ना पड़ा कि मैं प्राईवेट परीक्षा दूंगा या फिर आर्थिक दशा ठीक होने पर पुनः कॉलेज में प्रवेश लूंगा.’
देहरादून से अपनी इण्टर तक की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद कमलाराम नौटियाल उत्तरकाशी लौट आए और अब वे उत्तरकाशी में रहकर ही सामाजिक कार्यों में जुट गए. कीर्ति हाईस्कूल में इस दौरान विज्ञान विषय में अध्यापक का अभाव हो गया. ऐसे में एक स्वयंसेवक के नाते 4 से 5 महीने तक कक्षा 8 से 10 तक के विद्यार्थियों को उन्होंने विज्ञान विषय पढ़ाया.
साल 1952 में उन्होंने उत्तरकाशी भ्रष्टाचार निरोधक संघ की स्थापना की. इस वक्त नौटियाल मात्र 22 साल के थे. बाद में इसका नाम बदलकर आदर्श नागरिक संघ किया गया. समाज सेवा तो चल ही रही थी मगर घर का गुजर बसर भी ज़रूरी था. ऐसे में उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कमल पोथी शाला के नाम से एक छोटी सी पुस्तकों एवं स्टेशनरी की दुकान खोल ली. उनकी आर्थिक हालत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि नौटियाल कभी-कभी स्टेशनरी और बच्चों के खिलौने बोरी में भर कर, पीठ पर लाद कर ग्रामीण मेलों में फेरी की दुकान लगाकर जीवन-यापन करने लगे थे.
आदर्श नागरिक संघ के माध्यम से टिहरी जिले में पहली बार रामलीला समिति उत्तरकाशी का गठन हुआ. साल 1954 में पहली बार 10 दिन तक रामलीला का मंचन किया गया था. रामचरितमानस के अनेकों उदाहरणों के माध्यम से उन्होंने उत्तरकाशी की जनता में प्रगतिशील और क्रान्तिकारी विचारों के बीज बोने के प्रयास किए. कमलाराम नौटियाल की इस पहल के बाद से उत्तरकाशी के साथ-साथ टिहरी जिले के गांवों में भी रामलीला का मंचन होने लगा था.
वक्त के साथ-साथ कमलाराम उत्तरकाशी में अनेक समाजसेवी संस्थाओं के साथ जुड़ते गए. इस वजह से प्राईवेट पढ़ाई जारी रख के आगे की शिक्षा हासिल कर पाना उनके लिए संभव नहीं था. ऐसे में उन्होंने अपनी दुकान कमलपोथी शाला में अपने छोटे भाई को बैठा लिया और खुद 1955 में देहरादून जाकर डीएवी कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में एडमिशन ले लिया. साल 1959 में कमलाराम नौटियाल ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर ली. इस दौरान वो तमाम कम्युनिस्ट नेताओं के सानिध्य में थे. डीएवी में वे ऑल इंडिया स्टूडेण्ट फेडरेशन यानी एआईएसएफ के साथ जुड़ गए और कुछ वक्त बाद इसके अध्यक्ष भी बना दिए गए. वकालत की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद वे देहरादून में मई 1960 तक रहे और जून 1960 से उत्तरकाशी में वकालत करने लगे. ये वही साल था जब टिहरी से उत्तरकाशी को अलग कर एक अलग जिला बना दिया गया था.
उत्तरकाशी जब जिला बना तो जिला मुख्यालय के लिए उत्तरकाशी की जनता की उपजाऊ भूमि को तत्कालीन जिला प्रशासन अधिग्रहीत कर रहा था. ऐसे में कमलाराम ने किसानों और स्थानीय लोगों को एकजुट कर उनकी बरसों पुरानी जमीनों पर कब्जा किए जाने का विरोध किया. उत्तरकाशी का ये आन्दोलन बेहद अनोखा था. कुछ दिनों के संघर्ष के बाद अधिग्रहण रूका और जब मुख्यालय के लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी, तो 750 रूपए प्रति नाली के हिसाब से किसानों को मुआवजा दिया गया और अन्य सुविधाओं के आश्वासन भी दिए गए. तब जाकर किसानों ने अपनी जमीन छोड़ी. इसी जमीन पर आज का उत्तरकाशी जिला कार्यालय, लोक निर्माण विभाग कार्यालय और जिला चिकित्सालय मौजूद है. साल 1960-62 में इस क्षेत्र में पैमाइश की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी थी. जमीन सम्बन्धी विवादों की भरमार होने लगी. कमलाराम नौटियाल को भी इनमें से कई विवादों को सुलझाने के मौके मिले. उनकी वकालत यहां काम आ रही थी.
अब आता है वो वक्त जब कमलाराम नौटियाल पहली बार चुनाव लड़े. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने साल 1962 के आम चुनाव में उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उत्तरकाशी विधानसभा का उम्मीदवार बनाया था. उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के ठाकुर कृष्ण सिंह और जनसंघ के धन्नासेठ उम्मीदवार प्रेम सिंह पंवार थे. इस चुनाव में उन्हें जनसंघ के उम्मीदवार से करीब 200 से 300 वोट अधिक मिले. हालांकि चुनाव में कांग्रेस के ठाकुर कृष्ण सिंह विजय हुए मगर इस चुनाव में कमलाराम, उत्तरकाशी विधानसभा की जनता को समाजवादी विचारों के परिचित करवा चुके थे.
तरह-तरह के आन्दोलनों में सक्रिय रहने के कारण स्थानीय प्रशासन भी उन्हें अच्छे से जानने-पहचानने लगा था. लिहाज़ा उन्हें डराने-धमकाने की मंशा लिए 5 अक्टूबर 1967 के दिन नजरबन्दी कानून यानी प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट के अन्तर्गत गिरफ्तार कर टिहरी जेल भेज दिया गया. उन्हें अंग्रेजी में टाईप की हुई 9 पेज की एक चार्ज शीट, एक्ट की धारा-7 के अन्तर्गत थमा दी गई जिसमें साल 1960 से 1967 तक किए गए कुछ आन्दोलनों को अपराध के रूप में संक्षिप्त रूप में लिखा गया था.
नजरबन्दी कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके साथी चन्दन सिंह राणा, धर्म सिंह चौहान और केवल सिंह पंवार को भी भटवाड़ी में फौजदारी कानून की धाराओं के अन्तर्गत जेल भेज दिया गया. उनकी गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही उत्तरकाशी जिले की गाजणा और कठूड़ पटटी के हजारों लोग आक्रोशित हो उठे और ढोल-दमाउ के साथ सड़कों पर निकल आए. बाड़ागड्डी तथा बाड़ाहाट से विशाल जुलूस निकले और जिला प्रशासन का विरोध करने 20 से 25 मील तक पैदल चल कर प्रदर्शनकारी उत्तरकाशी पहुंचे. जैसे जैसे आम लोगों को इसकी सूचना मिली कि उनके नेता कमलाराम नौटियाल को जेल भेज दिया गया है, लोग जुलूस में शामिल होते गये और सभी ने जिला कार्यालय को घेर लिया. इतने बड़े प्रदर्शन को देखकर जिला प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए. किसी बड़ी अनहोनी से बचने के लिए उत्तरकाशी जिलाधिकारी ने एक जीप उन्हें वापस लाने के लिए टिहरी जेल भेजी. उसी सरकारी जीप में जब कमलाराम नौटियाल उत्तरकाशी लौटे तो उनका फूल मालाओं के साथ स्वागत किया गया.
अपनी आत्मकथा में कमलाराम लिखते हैं, ‘फूल मालाओं से स्वागत के बाद मुझे एक जलसे के साथ हनुमान चौक पर लाया गया. ये जलसा यहां आकर आम सभा में बदल गया और जनता के इस प्यार को देखकर मैं गदगद हो गया. इस दौरान मेरे मन में ख्याल आया कि जनता के स्नेह का मूल्य कभी नहीं चुकाया जा सकता. अपने पास जो तुच्छ शरीर और आत्मिक एवं बौद्धिक शक्तियां हैं वह सभी जन सेवा के लिए हैं और उन्हें सीमित दायरे में ही सही, अत्याचारों के खिलाफ लगा देना चाहिए.’ इस बारे में जनयुग और न्यू एज जैसे अखबारों में खूब लेख प्रकाशित हुए.
1962 में जब भारत-चीन युद्ध हुआ तो उत्तरकाशी से 3 किलोमीटर आगे से भटवाड़ी ब्लॉक में कमलाराम नौटियाल के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी. इस पर अपने तमाम कम्युनिस्ट साथियों के साथ उन्होंने सरकार की इस कार्यवाही का विरोध पर्चों और आम सभाओं के माध्यम से किया.
साल 1967 के आम चुनावों में कमलाराम नौटियाल ने उत्तरकाशी विधानसभा क्षेत्र से ही चुनाव लड़ा. इस बार कॉंग्रेस के ठाकुर कृष्ण सिंह और जनसंघ के अतर सिहं नेगी के खिलाफ उनकी दावेदारी थी. इस चुनाव में उन्हें कुल 8000 वोट मिले थे जबकि जनसंघ के उम्मीदवार को सिर्फ 3000. कॉंग्रेस के प्रत्याशी को करीब 13000 वोट प्राप्त हुए थे. उस वक्त विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कमलाराम नौटियाल का 8000 वोट प्राप्त करना एक संतोषजनक प्रदर्शन माना गया.
साल 1969 में उत्तरप्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए. इनमें भाकपा द्वारा फिर से उन्हें उम्मीदवार घोषित किया गया. इस बार उन्हें करीब 13000 वोट प्राप्त हुए थे. कॉंग्रेस के कृष्ण सिंह को 16000 और जनसंघ के प्रत्याशी को मात्र 3000. मतों से साफ झलक रहा था कि उत्तरकाशी की जनता के बीच कमलाराम नौटियाल हर बार और अधिक लोकप्रिय हो रहे थे.
कमलाराम नौटियाल ने ‘मंजलों सेरा बचाव आंदोलन’, 1970 का ऐतिहासिक ‘भूमि हथियाओ आंदोलन’, ‘गढ़वाल विश्वविद्यालय बनाओ आंदोलन’, महंगाई विरोधी आंदोलन और उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन जैसे अनेकों छोटे-बड़े जनान्दोलनों में हिस्सा लिया, जिनमें से अधिकतर आंदोलनों का वे नेतृत्व कर रहे थे.
नौटियाल जब उत्तरकाशी नगर पालिका के अध्यक्ष थे तो उन्हें जुलाई 1973 में सोवियत रूस जाने का मौका मिला. दरअसल सोवियत रूस की सरकार के निमंत्रण पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से उन्हें सोवियत जाने का अवसर मिला. 21 दिनों तक वे सोवियत रूस के अनेकों प्रमुख नगरों और गांवों में घूमे. वे उत्तर प्रदेश भाकपा का नेतृत्व कर रहे थे. नौटियाल अपनी किताब में लिखते हैं कि ‘मुझे मास्को, सेंट पीटर्सबर्ग, ताशकंद जैसे विकसित शहरों को देखने का मौका मिला. वहां के शिशु गृह, पार्क, स्वीमिंग पूल, मीटिंग हॉल और थिएटर वैज्ञानिक ढंग से सुव्यवस्थित यातायात व्यवस्था, विद्युत व सफाई व्यवस्था, सड़कों के किनारे व सड़कों के मध्य खूबसूरत पार्क, स्टेडियम, स्थायी सरकारी भवन, वाचनालय, अजायबघर, मैट्रो रेल व्यवस्था, लेखक, कवि और साहित्यकारों के स्मारक आदि देखने का मौका मिला. इस विकसित देश की एक आश्चर्यजनक बात थी कि तब 40 वर्षों से वहां के मक्खन और डबल रोटी की कीमतों में कोई अन्तर नहीं आया था. मेरी बार-बार उत्तरकाशी को उससे भी बेहतर ढ़ंग से, वैज्ञानिक ढ़ंग से बनाने की कल्पना रही. सोवियत रूस के नगरों, शहरों और ग्रामीण अंचलों में मुझे कहीं भी फुटपाथ पर कराहता हुआ, बिना मकान का बेघर आदमी, बेरोजगार इंसान देखने को नहीं मिला. ग़रीबी, अशिक्षा का स्पष्ट रूप से सोवियत रूस उन्मूलन कर चुका था.’ इस यात्रा के दौरान उन्हें रेडियो मास्को में इस राजनीतिक यात्रा के सोवियत संघ में अनुभव विषय पर वार्ता करने के लिए आमंत्रित किया गया.
कमलाराम नौटियाल का उत्तरकाशी नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए एक किस्सा बड़ा प्रसिद्ध है. ये बात साल 1973 की है. उत्तरकाशी के बिड़ला हाऊस से कुछ आगे एक सड़क के किनारे बि़ड़ला प्रबन्धक 11 दुकानों का निर्माण करना चाह रहे थे. जहां पर दुकानें बननी थी वहां पर सालों से अपने छोटे खोखे चलाकर घर-परिवार का गुजर-बसर करने वाले गरीब लोग रहते थे. दुकानों के निर्माण के लिए उन्हें वहां से हटाया जाने लगा था. इसके अलावा दुकानों के निर्माण से उस जगह का स्वरूप भी खतरे में था.
अब इन दुकानों का जो नक्शा बना था, उसे नगर पालिका अध्यक्ष ने पास नहीं किया. ऐसे में बिड़ला प्रबन्धक ने अपने एक कर्मचारी को नगर पालिका अध्यक्ष कमला राम नौटियाल के घर भेजा. वो व्यक्ति अध्यक्ष साहब के घर पहुंचा औऱ एक लिफ़ाफा छोड़ गया. कमला राम नौटियाल ने लिफ़ाफ़ा खोला तो मालूम पड़ा कि उसमें 11 सौ रुपए रखे हुए हैं. ये देखकर वे अचम्भे में थे और उन्होंने सोचा कि गलती से ये लिफाफा शायद छूट गया हो. कुछ ही घण्टों बाद उत्तरकाशी के बिड़ला परिवार के पुरोहित, नौटियाल के पास आए और कहा कि दुकान के 11 सौ रुपए मुनीम जी आपके पास छोड़ गए होंगे, 12 हज़ार रुपए और मिलेंगे, बस नक्शा पास करवाने में बाधा पैदा न करें. ये सुनते ही अध्यक्ष कमलाराम नौटियाल तमतमा उठे. उन्होंने तुरंत पुलिस को बुलाने के निर्देश दिए. मामला उलटा पड़ता देख पुरोहित वहां से भाग गया.
कमला राम नौटियाल ने वो पैसे नगरपालिका कोष में जमा कर दिए. इसी दौरान नौटियाल गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. मौके की नज़ाकत को देखते हुए बिड़ला प्रबन्धकों ने इस बीच अपनी 11 दुकानों की बुनियाद डाल दी और करीब 7 से 8 फुट तक चिनाई भी करवा दी. नौटियाल को ज्यों ही इस बात का पता चला उन्होंने अपने कर्मचारियों को जरूरी आदेश दे दिए. निर्माण कार्य रोक दिया गया और जो कुछ काम हुआ था उसे तुड़वा दिया गया.
अब इसके बाद बिड़ला प्रबन्धकों ने इसे अपनी इज्जत का सवाल बना लिया. ऐसे में उन्होंने जिलाधिकारी उत्तरकाशी, कमिश्नर पौड़ी, जिला जज टिहरी, हाईकोर्ट इलाहाबाद और हाईकोर्ट दिल्ली में नगर पालिका उत्तरकाशी के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिए. मगर सभी न्यायालयों में बिड़ला प्रबन्धक को मुंह की खानी पड़ी. कमला राम नौटियाल 14 सालों तक उत्तरकाशी नगरपालिका के अध्यक्ष रहे.
साल 1989 में भाकपा द्वारा उन्हें टिहरी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में उतारा गया. इस चुनाव में नौटियाल को 86000 मत प्राप्त हुए थे, जो कि उस वक्त बेहद अच्छा प्रदर्शन माना गया. साल 1991 में जब उत्तरकाशी शहर में भयानक भूकम्प ने दस्तक दी, तो गांव-गांव जाकर उन्होंने पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाने के हर संभव प्रयास किए. इस दौरान उनके पैर में फीमर की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ था, साथ ही पैर में स्टील की रॉड भी पड़ी हुई थी. इसके बावजूद उन्होंने पीड़ितों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
कमलाराम नौटियाल यूं तो अनेकों बार चुनावी मैदान में उतरे. कई सारे चुनाव वे हारे और कुछ चुनाव वे जीते. अधिक बार ऐसा हुआ कि जो चुनाव वे हारे उनमें अन्तर कम ही रहा और हर बार उन्हें जनता का बेशुमार प्यार मिला.
कमलाराम नौटियाल के जीवन के संघर्षों को देखते हुए साल 1998 में अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीट्यूट ने उन्हें मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया. नौटियाल के मित्र और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव एबी वर्धन उनके संस्मरण में लिखते हैं कि ‘कमलाराम जहां एक ओर वकालत करते थे, पार्टी का काम करते थे, वहीं दूसरी ओर उनका प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति भी अगाध प्रेम था. इसी कारण कमलाराम नौटियाल एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिन्होंने उत्तरकाशी में स्थित सभी ग्लेशियरों तक पैदल पहुंच कर सही जानकारी ही नहीं हासिल की बल्कि कई ग्लेशियरों की स्थिति को देश-दुनिया के सामने सर्वप्रथम रखने का काम किया. कमला राम नौटियाल वो नेता भी थे, जिन्होंने तब ग्लोबल वार्मिंग के बारे में दुनिया को चेता दिया था, जब अधिकांश लोगों ने ये नाम सुना तक नहीं था.’
कमलाराम नौटियाल ट्रैकिंग के बेहद शौकीन थे. ऐसा माना जाता था कि कमलाराम एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो उत्तरकाशी के हर जिले, हर गांव, पहाड़ी और पट्टी तक पहुंचे थे. उनके मित्र डॉ0 मित्रानन्द बडोनी कहते हैं कि कमलाराम के संघर्षों के कारण ही उत्तरकाशी में भोटिया लोगों तक का क्षेत्र लाल घाटी के नाम से जाना जाता है.
कमलाराम नौटियाल उत्तराखण्ड में जनसंघर्षों के असल नायक रहे. कठिन हालातों में भी नौटियाल ने हार नहीं मानी. समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा लिए नौटियाल हर वक्त तैयार रहते थे. जनसेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का मकसद मान लिया था. उनका जीवन सफ़ेद साफ़ कपड़े की तरह दागरहित रहा और इसी कारण उनकी बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कोई झूठ-फरेब उनके चरित्र में नज़र नहीं आता था.
24 अप्रैल 2004 को उनकी अचानक तबियत बिगड़ी. डॉक्टरों का कहना था कि ये उनके सिर पर लगी किसी पुरानी चोट के कारण हुआ है. संभवत ये वही चोट रही होगी जो उन्हें तिलोथ कांड के दौरान पुलिस के सिर पर पड़े डंडे के कारण लगी थी. धीरे-धीरे उन्हें स्पीच लॉस भी होने लगा. देहरादून में मौजूद सीएमआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. करीब 8 साल बाद 26 दिसम्बर 2012 को कमलाराम नौटियाल ने लगभग 82 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली.
उनके निधन की खबर सुनते ही न केवल उत्तरकाशी, बल्कि पूरे उत्तराखंड से तमाम लोग हाथों में लाल झंडे लिए लाल सलाम के नारों के साथ उनकी शवयात्रा में शामिल हुए. उत्तराखण्ड के एक सच्चे जन पुरोधा के रूप में कमलाराम नौटियाल हमेशा याद किए जाएंगे.
स्क्रिप्ट: अमन रावत
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