इस हफ़्ते अपना उत्तराखंड कई कारणों से राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में छाया रहा. और जैसा कि अक्सर होता है, इस बार भी हमारे सुर्ख़ियाँ बटोरने के पीछे हमारी उपलब्धियाँ नहीं बल्कि ख़ामियाँ ही ज़्यादा रही. पिछले हफ़्ते हमने एक कीर्तिमान जरूर रचा था जब नीती आयोग ने हमें Sustainable Development Goals हासिल करने वाले राज्यों में केरल के साथ सर्वोच्च स्थान दिया था. लेकिन हमने भी अव्वल आने के बाद नीती आयोग को ठेंगा दिखाने में एक हफ़्ता भी नहीं लगाया और जोशीमठ विकासखंड में जातिगत भेद-भाव का ऐसा नमूना पेश किया कि नीती आयोग भी सोचता होगा, हमने कैसे Reduced Inequality के पैमाने पर उत्तराखंड को 69 अंक दिए थे. इसके अलावा आपदाओं के चलते तो हम हमेशा सुर्ख़ियों में रहते ही हैं, सो इस बार भी रहे जब केदारनाथ पैदल मार्ग पर बोल्डर गिरने से तीन लोगों की मौत हो गई और काफी समय से बन रहा नरकोटा पुल जब आत्महत्या करते हुए भेल उंद समा गया. ये पुल साल 2022 में भी टूटा था और तब इसकी चपेट में आने से दो लोगों की मौत हो गई थी. इन खबरों पर अभी विस्तार से भी बात करेंगे लेकिन उससे पहले कुछ और सुर्ख़ियाँ देखते हैं जिनके चलते अपना उत्तराखंड देश भर में छाया रहा. ऐसी एक खबर वाया उत्तर प्रदेश भी आई. जब कांवड मार्ग पर फल-सब्ज़ी बेचने वालों को ठेलों पर अपना नाम चस्पा करने का फ़रमान मुज़फ़्फ़रनगर से जारी हुआ तो उत्तराखंड सरकार भी उछल कर इस मामले में कूद गई और उसने भी ऐसा ही फ़रमान जारी कर दिया. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के साथ ही उत्तराखंड सरकार को भी कंडाली की झपाक मारते हुए इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है. प्रदेश सरकार की ऐसी ही Foot In The Mouth वाली स्थिति बीते दिनों दिल्ली में केदारनाथ मंदिर निर्माण को लेकर भी हुई थी. अपने मुख्यमंत्री दिल्ली में बन रहे मंदिर के भूमि-पूजन में जब पहुंचे थे तो उनके सोशल मीडिया पेज से इस पूरे इवेंट का लाइव प्रसारण किया गया था. उन्होंने लम्बा भाषण देते हुए मंदिर के महत्व पर चर्चा की थी और मंदिर बनाने वाले ट्रस्ट ने खूब दावा किया था कि अब दिल्ली में होंगे बाबा केदार के दर्शन. लेकिन ये मामला जब उलटा पड़ने लगा और सरकार की फजियत होने लगी कि 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ धाम का मायग्रेशन करना निंदनीय है तो सरकार बैकफ़ुट पर आइ. धामी जी ने भी तब ज़ोरदार बयान दिए कि ‘कहीं भी दूसरा केदारनाथ धाम हो ही नहीं सकता.’