Uttarakhand के लिए इस साल की शुरुआत बिलकुल पीपली लाइव फ़िल्म की तरह हुई और यहां का पीपली बना Joshimath शहर. जनवरी के शुरुआती हफ़्ते में देश-विदेश के पत्रकार, मीडिया संस्थान, कैमरा-क्रू और ओबी वैन लेकर पहाड़ चढ़ते नजर आए. राष्ट्रीय चैनलों पर दिन-रात जोशीमठ की खबरें छाई रही और करीब दो हफ़्तों तक इस शहर का मर्सिया पढ़ा गया. बहस होती रही कि आख़िर नत्था मरेगा या नहीं. इस पर कम ही बहस हुई कि इस नत्था को मारने की प्रक्रिया तो दशकों से चल रही है और ये उन 15 दिनों में पूरी होने वाली भी नहीं है, जिन 15 दिनों तक राष्ट्रीय चैनल कैमरों के साथ जोशीमठ में मोर्चा सम्भाले रहे. इसीलिए जब देश-विदेश के मीडिया संस्थान जोशीमठ से लौट गए, तब भी इस शहर का दरकना कम नहीं हुआ. उन लोगों की समस्याएँ कम नहीं हुई जो पीढ़ियों से यहां रहते आए हैं. उनका संघर्ष मीडिया के लौट जाने के बाद भी जारी रहा और आज भी जारी है. देश तमाम के मीडिया की नजर पड़ने से इतना जरूर हुआ कि जोशीमठ को लेकर शासन-प्रशासन कुछ हरकत में आया. स्थानीय लोगों के 107 दिन लम्बे अनशन के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami ने आश्वासन दिया कि जनता की 11 सूत्रीय मांगों पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी. लेकिन इस आश्वासन को भी अब एक महीना होने को है और जनता की समस्याएँ ज्यों-की त्यों बनी हुई हैं. बल्कि कई लोगों के लिए तो स्थिति पहले से भी बदतर हो चली है. ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें अब मजबूरन अपने उन्हीं टूटे हुए मकानों में लौट जाने को मजबूर होना पड़ रहा है जहां से उन्हें तीन महीने पहले ये कहते हुए हटाया गया था कि उनके मकान अब एक दिन भी रहने लायक़ स्थिति में नहीं हैं.