अल्बर्ट आइंस्टाइन के दिमाग़ की चोरी की कहानी

  • 2022
  • 7:48

यह कहानी आपको किसी साइंस फ़िक्शन की तरह लग सकती है लेकिन है नहीं. क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जा सका इंसानी दिमाग़ चोरी हो गया था? हॉं, हम बात कर रहे हैं दुनिया के सबसे जीनियस माने जाने वाले साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टाइन के दिमाग़ के बारे में जो उनकी मौत के कुछ घंटों बाद ही चोरी हो गया था. आज के ‘हुआ यूं था’ इस एपिसोड में हम आपको बताएगें आइंस्टाइन के दिमाग़ के चोरी होने की कहानी.

आइंस्टाइन का दिमाग़ दुनिया के उस विरले दिमाग़ के तौर पर जाना जाता है जिसका सबसे अधिक इस्तेमाल हो पाया था. लेकिन 1955 में आइंस्टाइन की मौत के लगभग साढ़े सात घंटे बाद ही उनका दिमाग चोरी हो गया था.

19 वीं शताब्दी में दुनिया के जीनियस दिमाग़ों को सहेज कर रखने का प्रचलन था. ताकि वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर सकें कि इन इंसानों की बुद्धिमत्ता का यह स्तर कैसा था. कम्प्यूटिंग मशीन यानि कम्यूटर की खोज करने वाले चार्ल्स बैबेज का दिमाग़ भी लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स के हंटेरियन म्यूज़ियम में रखा गया है.

आइंस्टाइन के दिमाग़ की चोरी का क़िस्सा बेहद दिलचस्प है. दरअसल आइंस्टाइन को इस बात का पहले से ही यक़ीन था कि वैज्ञानिक उनके मरने के बाद उनके दिमाग़ का अध्ययन करना चाहेंगे. लेकिन उन्होंने इसके लिए स्पष्ट तौर पर मना कर दिया था, क्योंकि वे मानते थे कि इस तरह के अध्ययन मुश्किल से ही कोई काम की जानकारी मुहैया करा पाते हैं. हालांकि ऐसा भी माना जाता है कि कई बार उन्होंने अपने शरीर को वैज्ञानिकों को शोध के लिए सौंपने पर सहमति भी जताई थी.

ख़ैर! 1955 में अप्रैल की 18 तारीख़ को सुबह-सुबह जब इस जीनियस साइंटिस्ट की मौत हुई, तो उनकी ऑटोप्सी करने वाले पैथॉलॉजिस्ट डॉ. थॉमस हार्वे ने ख़ुद से यह निर्णय ले लिया कि उनके दिमाग़ को भविष्य में अध्ययन के लिए सुरक्षित रख लिया जाए.

डॉ. हार्वे ने आइंस्टाइन के दिमाग़ को निकाला जिसका वज़न तक़रीबन 1 किलो 230 ग्राम था. वे उसे University of Pennsylvania की एक लैब में लेकर गए. उन्होंने वहां इसकी अलग-अलग एंगल्स से कई तस्वीरें उतारी और उसके 240 टुकड़े किए और उन्हें प्लास्टिक जैसे दिखने वाले एक सॉल्युशन, कोलोडिऑन में रख दिया. उन्होंने दिमाग़ के कुछ हिस्सों को अपने पास रखा और कुछ हिस्सों को उस दौर के मशहूर पैथलॉजिस्ट को सौंप दिया.

डॉ. हार्वे ने ऐसा इस उम्मीद में किया था कि आइंस्टाइन जैसे जीनियस और विरले इंसान के दिमाग़ के हिस्सों का माइक्रोस्कोप की मदद से किया गया अध्ययन यानि साइटोआर्किटेक्टोनिक्स, उन महत्वपूर्ण जानकारियों तक पहुंचाएगा जो कि भविष्य में इंसानी दिमाग़ की संभावनाओं को और विस्तार से समझने में मददगार होंगी.

Possessing Genius: The Bizarre Odyssey of Einstein’s Brain की लेखिका Carolyn Abraham एक इंटर्व्यू में बताती हैं, ‘हार्वे को अपने प्रोफ़ेशन से बड़ी उम्मीदें थीं. मुझे लगता है उन्हें मेडिसिन के क्षेत्र में अपना नाम कमाना था, जो कि अन्यथा नहीं संभव था. और एक दिन जब वे अपने काम पर गए तो उन्हें अपनी ऑटोप्सी टेबल पर अल्बर्ट आइंस्टाइन के शरीर को लेटा पाया.’

यह हार्वे की व्यक्तिगत् महत्वाकांक्षा रही हो या फिर दुनिया के सबसे महान दिमाग़ को अध्ययन के लिए संरक्षित कर पाने की उनकी पेशेवर भूख, चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन तकनीकी तौर पर यह एक चोरी थी. क्योंकि न तो आइंस्टाइन, न ही उनके परिवार के किसी सदस्य, और न ही किसी दूसरी अथॉरिटी से उन्होंने ऐसा करने की अनुमति ली थी.
जब न्यू जर्सी के ट्रेन्टन में आइंस्टाइन का अंतिम संस्कार कर दिया गया तो उसके थोड़ी देर बाद ही आइंस्टाइन के बेटे हान्स अल्बर्ट को इस चोरी के बारे में पता चल गया और वह सदमे में आ गए. हालांकि बाद में डॉ. हार्वे ने उन्हें आइंस्टाइन का दिमाग़ अपने ही पास ही संरक्षित रखने के लिए मना लिया.

अगली सुबह न्यूयॉर्क टाइम्स में फ्रंट पेज पर एक स्टोरी छपी जिसमें लिखा गया था, ‘जिस दिमाग़ ने थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी पर काम किया और परमाणु के विखंडन को संभव बनाया, उसे वैज्ञानिक अध्ययन के लिए निकाल कर संरक्षित रख लिया गया है.’

लेकिन दुनिया के सबसे मशहूर भौतिक विज्ञानी का दिमाग़ चुरा लेना डॉ. हार्वे की प्रोफ़ेश्नल लाइफ़ के लिए एक अच्छा अनुभव नहीं रहा. इसने उन्हें कई स्तर पर नुक़सान पहुंचाया. उन्हें जल्द ही अपनी नौकरी खोनी पड़ी और उनके वैवाहिक जीवन पर भी इसका बुरा असर पड़ा.

कैरोलिन अब्राहेम के अनुसार, ‘ऐसा माना जाता था कि यह दिमाग़ हार्वे के लिए एक गुड लक चार्म साबित होगा लेकिन असल में यह उनके लिए अभिशाप साबित हुआ. उन्होंने जब से इस दिमाग़ को निकाला, उन्होंने सब कुछ खो दिया. उनकी नौकरी चली गई. शादी टूट गई. Princeton में उनका करियर डूब गया. जब से उनके इस दिमाग़ को ले लेने पर विवाद हुआ उसके बाद से फिर वे कभी अस्पताल में क़दम वापस नहीं रख पाए.’

इसके बाद डॉ. हार्वे, न्यू जर्सी छोड़ मिडवैस्ट की तरफ़ चले गए जहां उन्होंने मेडिसिन प्रैक्टिस करते हुए या रिसर्च लैब चलाते हुए कई छोटी मोटी नौकरियां की. आइंस्टाइन के दिमाग़ को उन्होंने कई दशकों तक संभाल कर रखा, जिससे उन्हें कई उम्मीदें थीं.

1978 तक आइंस्टान के दिमाग़ की इस गुत्थी के बारे में अधिकर दुनिया अनजान ही थी, लेकिन फिर एक पत्रिका न्यू जर्सी मंथली के Steven Levy नाम के एक युवा रिपोर्टर ने कंसास के विचिटा में हार्वे को खोज निकाला.

लेवी ने अपनी रिपोर्टिंग के इन अनुभवों को बीबीसी के पत्रकार विलियम क्रेमर के साथ कुछ यूं शेयर किया है,

‘जब मैंने उन्हें कहा कि मैं आइंस्टाइन के दिमाग़ को लेकर एक स्टोरी कर रहा हूं तो उन्होंने जो पहली चीज़ मुझे कही, वह थी, ‘मैं इस बारे में आपकी कोई मदद नहीं कर पाउंगा.’ उन्हें इस पर बात करने को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन कुछ समय बाद वो इसके लिए मान गए. वो काफी इंट्रोवर्ट इंसान थे. एक सौम्य इंसान. उन्हें इसे लेकर काफ़ी गर्व था कि वे आइंस्टाइन के दिमाग़ को लेकर रिसर्च कर रहे थे. लेकिन उनके पास इस सवाल का कोई अच्छा जवाब नहीं था कि तक़रीबन 25 साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस अध्ययन पर कुछ छपा क्यों नहीं?’

पत्रकार लेवी ने जब हार्वे पर दबाव बनाया कि वे उन्हें आइंस्टाइन के दिमाग़ की कुछ तस्वीरें दिखाएँ, तो पहले उनके चेहरे पर कुछ अजीब से भाव आए. फिर वे उठे, लेवी के पीछे की ओर कमरे के एक किनारे गए, और कार्डबोर्ड से बने बक्से के भीतर से एक बीयर कूलर बाहर निकाला जिसमें लिखा था Costa Cider.
लेवी उस पल को कुछ ऐसे याद करते हैं, ‘वे मेरे पास पहुंचे, उन्होंने इस बीयर कूलर में से बड़े मैसन जारों को बाहर निकाला. उनके भीतर आइंस्टान का दिमाग़ रखा हुआ था. यह अद्भुत था.’

आइंस्टाइन के दिमाग़ और हार्वे के बारे में लेवी की यह रिपोर्ट जब न्यू जर्सी मंथली में प्रकाशित हुई इसने फिर एक बार आइंस्टाइन के दिमाग़ पर शोध की चर्चाओं को गर्मा दिया.
मशहूर विज्ञान पत्रिका साइंस ने भी हार्वे का इंटरव्यू लिया और कई दूसरे रिपोर्टर्स भी उनके इंटरव्यू के लिए उनके लॉन में कैंप जमाए रहे.

University of California, Berkeley के मशहूर न्यूरो एनाटोमिस्ट मैरिएन डाइमंड ने भी हार्वे से आइंस्टाइन के दिमाग़ के सैम्पल्स के लिए संपर्क किया. बाद में हार्वे ने पोस्ट के ज़रिए एक पैकेज़ डायमंड के लिए भिजवाया जिसमें आइंस्टाइन के दिमाग़ के चार टुकड़ों का सैम्पल था. यहीं से आइंस्टाइन के दिमाग़ पर अध्ययन का असली सिलसिला शुरू हुआ
1985 के बाद से ऐसे कई शोध इस सिलसिले में सामने आए जिसमें आइंस्टाइन के दिमाग़ की संरचना में भी आम इंसानों के दिमाग़ से कई तरह के फ़र्क़ होने का दावा किया गया. हालांकि न्यूरोलॉज़ी में अब भी इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि दिमाग़ की संरचना या आकार का किसी इंसान की बुद्धिमत्ता पर फ़र्क़ पड़ता है.

आइंस्टाइन की मौत के 67 साल बाद भी उनके दिमाग़ के कई अवशेष आज तक सुरक्षित रखे गए हैं. इनमें से कुछ न्यू जर्सी के प्लेन्सबोरो में मौजूद Penn Medicine Princeton Medical Center में हैं और कुछ पेन्सल्वेन्या के Mutter Museum में जहां आम लोग भी इन्हें देख सकते हैं.

स्क्रिप्ट : रोहित जोशी

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