जब टिहरी में पहली बार पहुंचा रेडियो

  • 2022
  • 4:38

रेडियो का आविष्कार साल 1896 में इटली के साइंटिस्ट गूल्येलमो मारकोनी ने किया था. इस आविष्कार के साथ ही पूरी दुनिया में संचार क्षेत्र में क्रांति आ गई थी. हालांकि अब इंटरनेट के आ जाने से रेडियो और टेलीविजन भी बीते दिनों की बातें होने लगी हैं. लेकिन आज से सौ साल पहले रेडियो का ग़ज़ब जलवा हुआ करता था.

24 दिसम्बर 1906 के दिन जब कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसेडेन ने अपना वॉयलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में तैर रहे अनेकों जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने इस म्यूज़िक को अपने रेडियो में सुना और झूम उठे. ये दुनिया का पहला रेडियो प्रसारण था.

वैसे इससे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने भारत में और मारकोनी ने इंग्लैंड में बेतार प्रणाली की मदद से संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो प्रसारण की शुरुआत कर दी थी.

1947 आते-आते, यानी जब देश आज़ाद हुआ तब तक भारत में कुल 9 रेडियो स्टेशन खुल चुके थे, जिनमें से 3 विभाजन के चलते पाकिस्तान के पास चले गए. ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी की शुरुआत भी साल 1936 में हो चुकी थी जिसे तब इम्पीरियल रेडियो ऑफ़ इंडिया के नाम से जाना जाता था.

उस दौर में रेडियो इतना दुर्लभ हुआ करते थे कि इन्हें सुन पाना भी किसी सौभाग्य से कम नहीं था. टिहरी रियासत में पहुंचे पहले रेडियो को सुनने की अनुमति तो राजा के बेहद क़रीबियों तक को नहीं थी. क्या थी इस रेडियो की कहानी, चलिए जानते हैं.

साल 1935. ग़ुलाम भारत की तमाम रियासतों में टिहरी रियासत भी एक थी जहां पंवार राजवंश का शासन था. उस दौर में पंवार राजवंश की कमान राजा नरेन्द्र शाह के हाथों में थी जिनके नाम पर नरेन्द्र नगर शहर की भी स्थापना की गई थी.

बताते हैं कि राजा नरेन्द्र शाह घूमने-फिरने के बड़े शौक़ीन थे. जब भी उन्हें वक्त लगता तो वे देश-विदेशों में घूमने निकल जाते. उनकी एक समीक्षा में मनीराम बहुगुणा लिखते हैं, ‘नरेन्द्र शाह ने अपने राज्य को बेहतर ढंग से चलाने के लिए कई सारी योजनाएं बनाई, लेकिन इन सभी योजनाओं में से कुछ ही सफल हो सकी. इसका कारण यही था कि नरेन्द्र शाह अधिकतर विदेश भ्रमण पर ही रहते थे और उनकी गैर मौजूदगी में उनके राज्य के कर्मचारी कामकाजों में लापरवाही बरतते और मनमानी करने लगते.’

नरेंद्र शाह दुनिया-जहां में घूमने जाते तो हर जगह से कुछ न कुछ ख़रीद कर भी लाते. अपनी ऐसी ही एक यात्रा से वे एक रेडियो भी ख़रीद लाए थे. ज़ाहिर है कि पूरी टिहरी रियासत में सिर्फ़ नरेन्द्र शाह के पास ही उस वक्त रेडियो हुआ करता था. आम जनता की बात तो दूर राज्य के बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों को भी इसे देखने और सुनने की अनुमति नहीं थी. काफी लम्बे समय तक ये बात आम जनता के मन में जिज्ञासा पैदा करती रही कि राजा के पास जो रेडियो है वो दिखता कैसा होगा और उसे सुनने का अनुभव कैसा होगा.

कुछ समय बाद यूं हुआ कि टिहरी के ही एक अमीर व्यक्ति गुलजारी लाल असवाल ने राजा नरेन्द्र शाह से अनुमति लेकर एक रेडियो खरीदा. इस रेडियो को खरीदने के लिए गुलजारी लाल असवाल चार दिन पैदल चलकर मसूरी पहुंचे थे. उन्होंने ‘इमरसन’ कंपनी के इस रेडियो को रेडियो एजेन्ट बनवारी लाल ‘बेदम’ से खरीदा था. टिहरी में जब ये रेडियो पहुंचा तो जनता खुशी से झूम रही थी.

जर्मनी की इमरसन कंपनी के इस रेडियो में विंड चार्जर लगा होता था. इस विंड चार्जर को मकान की छत पर रखना होता था. जब हवा चलती तो इस पर लगी चरखी घूमने लगती और इसके घूमने से ही ये चार्ज होता. गुलजारी लाल के घर के पास से जब भी कोई गुजरता तो उनके मकान की छत पर लगे विंड चार्जर की चरखी को जरूर निहारता. इस चरखी को घूमता देखने की लोगों में खूब जिज्ञासा रहती और रेडियो सुनने के लिए तो कई लोग घण्टों उनके घर के बाहर इन्तज़ार करते रहते.

टिहरी रियासत के चीफ़ सेक्रेटरी इन्द्र दत्त सकलानी, न्यायमूर्ति उमा दत्त, डिप्टी सुरेन्द्र दत्त नौटियाल और कंजरवेटर पद्म दत्त रतूड़ी जैसे नामचीन लोग भी गुलजारी लाल साहब के घर पर ही रेडियो सुना करते थे.

एक बार जब उनके इस रेडियो के विंड चार्जर में कुछ तकनीकी खराबी आ गई तो इसकी मरम्मत के लिए मसूरी से बनवारी लाल ‘बेदम’ को डांडी पर बैठा कर टिहरी लाया गया. इस छोटी-सी खराबी को ठीक करने में उन्हें करीब 10 दिन का लम्बा समय लग गया था. दुनिया-जहां की तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां लोगों को इसी रेडियो से मिला करती थी. यूनाइटेड किंगडम के राजा जॉर्ज पंचम की जब मौत हुई तो इसकी खबर भी टिहरी के लोगों ने इसी रेडियो पर सबसे पहले सुनी थी.

 

स्क्रिप्ट : अमन रावत

 

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