जब दो राज्यों की पुलिस आपस में भिड़ गई

  • 2022
  • 5:27

असम, पूर्वोत्तर भारत का एक खूबसूरत राज्य. वैसे पूरा नॉर्थ ईस्ट रीजन जितना अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है, उतना ही समय-समय पर होते विवादों के लिए भी चर्चाओं में रहता है.

असम भी इन विवादों से अछूता नहीं है. अपने पड़ोसी राज्यों से इसके अक्सर सीमा विवाद होते रहते हैं. असम से क़रीब 50-60 साल पहले अलग हो चुके कुछ राज्यों के साथ तो उसके सीमा विवाद इस हद तक बढ़े हैं कि ये ऐसी हिंसक घटनाओं में तब्दील हुए जिनमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई.

असम और नागालैंड के बीच ऐसा ही एक संघर्ष दशकों से जारी है जो एक बार तो इतना बढ़ गया था दोनों राज्यों की पुलिस ही इस खूनी संघर्ष में उलझ गई. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था जब दो राज्यों की पुलिस आपस में भिड़ गई. इस घटना में 100 से ज़्यादा लोगों की जानें चली गईं थी.

असम देश का इकलौता ऐसा राज्य है जिसका अपने ज्यादातर पड़ोसी राज्यों से सीमा विवाद है. इन विवादों का एक बुनियादी पहलू ये है कि ये राज्य, असम से काटकर ही बनाए गए हैं. साल 1972 में मिजोरम औऱ अरुणाचल प्रदेश को असम से अलग कर केंद्र-शासित राज्यों का दर्जा दिया गया था. इसी साल मेघालय को भी पूर्ण राज्य बना दिया गया.

असम से अलग होने वाले राज्यों की कड़ी में नागालैंड पहला राज्य था. इसका गठन साल 1963 में हुआ था. तत्कालीन नागालैंड सरकार का दावा था कि असम जिन नगा पहाड़ियों के क्षेत्रों को मिलाकर बना है, उसका एक बड़ा हिस्सा उसे नहीं दिया गया. इस दावे के पीछे तर्क ये था कि अंग्रेजों के असम पर शासन से पहले नागा आबादी एक विस्तृत भूभाग में रहा करती थी लिहाज़ा वो सारा इलाका नए राज्य – नागालैंड – में शामिल होना चाहिए. उधर असम सरकार का कहना था कि 1 दिसम्बर 1963 को संवैधानिक रूप से जो सीमा तय की गई है, दोनों राज्यों को उसका सम्मान करना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और नागालैंड के गठन के साथ ही असम के सीमावर्ती जिलों में नगा विद्रोहियों द्वारा छिटपुट हमलों की घटनाएं होने लगीं. ये वही ज़िले थे जिनके कुछ इलाकों पर नागालैंड अपना अधिकार जताता है.

इन दोनों ही राज्यों के बीच की सीमा 434 किलोमीटर लम्बी है. असम का दावा है कि शिवसागर, जोरहाट, कार्बी आंगलांग और गोलाघाट में नागालैंड ने 66 हजार हेक्टेयर से भी ज्यादा भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है. उधर नागालैंड इस पर कहता है कि ये इलाके पहले से नगाओं के रहे हैं जिन्हें ग़लत तरीक़े से असम को दिया गया है.

60 के दशक में केंद्र सरकार ने कई बार दोनों राज्यों को बातचीत से सीमा विवाद हल करने के लिए कहा. लेकिन जब इसका कोई समाधान नहीं निकला तो 1971 में इस मसले को सुलझाने की जिम्मेदारी केवीके सुंदरम को दी गई. सुंदरम उस वक्त विधि आयोग के अध्यक्ष थे. इसके बाद दोनों राज्यों के बीच चार अंतरिम समझौते हुए, जिनके चलते कुछ समय तक सीमा पर शांति भी रही. लेकिन 1979 की एक घटना ने इन समझौतों को पूरी तरह महत्वहीन बना दिया. उस साल नगा विद्रोहियों ने असम के गोलाघाट जिले के कुछ गांवों में हमला कर 60 लोगों की हत्या कर दी थी. इसकी वजह से बिगड़े माहौल के चलते उस इलाके के पच्चीस हजार लोगों को वहां से पलायन करना पड़ा. केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद यहां मुश्किल से शांति स्थापित हुई ही थी कि 1985 में ठीक ऐसी ही एक और घटना हो गई.

इस बार गोलाघाट के मेरापानी में असम पुलिस की एक चौकी पर हमला किया गया. कहा जाता है कि ये हमला नागालैंड पुलिस के सिपाहियों ने किया था. उधर नागालैंड पुलिस का कहना था कि उनके सिपाहियों पर असम के पुलिसकर्मियों ने फायरिंग की थी. भारत के इतिहास में शायद ये पहली घटना थी जहां दो राज्यों के पुलिस बलों के बीच मुठभेड़ हुई थी. इसमें तकरीबन 100 लोग मारे गए थे जिनमें से 28 पुलिसकर्मी असम के थे.

इस घटना के बाद 1988 में असम सरकार ने सीमा विवाद से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. इसके 18 साल बाद 2006 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दोनों राज्यों की सीमा निर्धारित करने के लिए एक तीन सदस्यीय आयोग बनाया गया. इसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज थे. ये आयोग अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप चुका है लेकिन असम और नागालैंड के बीच का सीमा विवाद आज भी अनसुलझा ही है.

हालाँकि बीते दिनों के घटनाक्रम में इस विवाद के सुलझने की कुछ गुंजाइश बनती दिख रही है. वो इसलिए क्योंकि असम और नागालैंड ने अब अदालत से बाहर आपसी सहमति से इस विवाद को खत्म करने की पहल की है. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कुछ समय पहले ही ये बयान दिया है कि दोनों राज्यों का प्रतिनिधिमंडल जल्द ही इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलेगा. उनके साथ ही नागालैंड के उप मुख्यमंत्री वाई पैटन और नागा पीपुल्स फ्रंट के विधायक दल के नेता टीआर जेलियांग ने गुवाहाटी में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा से इस मसले पर मुलाकात भी की है.

नागालैंड के साथ ही मेघालय से भी असम का सीमा विवाद अक्सर चर्चाओं में रहता है. जानकार मानते हैं कि इन विवादों की जड़ असल में में असम के बँटवारे में ही छिपी है. बीते 50-60 सालों से चल रहे इस सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कभी कोई ठोस पहल हो ही नहीं सकी. अब भी अगर अदालत से बाहर ये मामला सुलझता है पूर्वोत्तर के लाखों लोगों के लिए ये एक बड़ी राहत होगी.

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